मंगलवार, 24 जून 2008

बाल कविता या प्रौढ़ कविता?

दोस्तों, कुछ दिनों पहले मुझसे एक कविता हो गयी. दोस्तों को पढ़वाई तो कहने लगे कि यह बाल कविता है. मैंने कहा कि अच्छा है, आजकल बाल-साहित्य पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है, लेकिन मुझसे बेध्यानी में ही सही; बाल-साहित्य के खाते में कुछ दर्ज़ हो गया.

उसके बाद कुछ और दोस्त कहने लगे कि यह सिर्फ बाल-कविता नहीं है, इसे प्रौढ़ लोग भी पढ़ सकते हैं. अब मैं दुविधा में पड़ गया. यह बाल-कविता है या प्रौढ़ कविता? मेरी इच्छा है कि सुधीजन इसे पढ़ें और बताएं कि मैं क्या समझूं?







गुरुजन

चींटी हमें दयावान बनाती है
बुलबुल चहकना सिखाती है
कोयल बताती है क्या होता है गान
कबूतर सिखाता है शांति का सम्मान.

मोर बताता है कि कैसी होती है खुशी
मैना बाँटती है निश्छल हँसी
तोता बनाता है रट्टू भगत
गौरैया का गुन है अच्छी सांगत.

बगुले का मन रमे धूर्त्तता व धोखे में
हंस का विवेक नीर-क्षीर, खरे-खोटे में
कौवा पढ़ाता है चालाकी का पाठ
बाज़ के देखो हमलावर जैसे ठाठ.

मच्छर बना जाते हैं हिंसक हमें
खटमल भर देते हैं नफ़रत हममें
कछुआ सिखा देता है ढाल बनाना
साँप सिखा देता है अपनों को डँसना.

उल्लू सिखाता है उल्लू सीधा करना
मछली से सीखो- क्या है आँख भरना
केंचुआ भर देता है लिजलिजापन
चूहे का करतब है घोर कायरपन.

लोमड़ी होती है शातिरपने की दुम
बिल्ली से अंधविश्वास न सीखें हम
कुत्ते से जानें वफ़ादारी के राज़
गाय से पायें ममता और लाज.

बैल की पहचान होती है उस मूढ़ता से
जो ढोई जाती है अपनी ही ताकत से
अश्व बना डालता है अलक्ष्य वेगवान
चीता कर देता है भय को भी स्फूर्तिवान.

गधा सरताज है शातिर बेवकूफ़ी का
ऊँट तो लगता है कलाम किसी सूफी का
सिंह है भूख और आलस्य का सिरमौर
बाकी बहुत सारे हैं कितना बताएं और...

सारे पशु पक्षी हममें कुछ न कुछ भरते हैं
तब जाकर हम इंसान होने की बात करते हैं.

-विजयशंकर चतुर्वेदी.

9 टिप्‍पणियां:

  1. बाल कविता है या प्रौढ़, यह तो हिंदी साहित्य के मठाधीश ही बता सकते हैं। लेकिन कविता पूरी तरह संप्रेषित होती है। हां, बस यह लाइन खटकती है कि गधा सरताज है शातिर बेवकूफ़ी का। गधा बेवकूफ तो होता है, लेकिन शायद शातिर नही।

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  2. पशु प्राणीयोँ से
    बहुत सीखना है अभी,
    इन्सान को !
    कविता अच्छी लगी
    -लावण्या

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  3. बढ़िया है विजय भाई!

    आपने समझना कुछ नहीं है बस जो मन आए लिखा करें. आनन्द आया एक साथ इतने सारे पशु-पक्षियों के नाम देख कर.

    शुभ!

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  5. अच्‍छी कविता, कोर्स में लगने लायक। मेरी बेटी को मैं ये कविता ज़रूर पढ़ाऊंगा, जब वो पढ़ने लायक होगी।

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  6. रघुराज भाई, कविता पर राय देने का शुक्रिया.
    गधे को लेकर शातिर मैंने इसलिए कहा कि कभी आप उसका व्यवहार गौर से देखें तो आप उसमें एक किस्म की बेफिक्री पाते हैं. वही बात जो सचमुच के बेवकूफ़ मनुष्य होते हैं, नहीं पायी जाती. शायद जैव आनुवांशिकता की वजह से हो. मनुष्य समझता है कि वह गधे को बेवकूफ़ बना रहा है जबकि गधा मनुष्य को बेवकूफ़ बना रहा होता है. बैल के ताल्लुक से आप यह बात नहीं कह सकते हैं यकीनन खेतिहर संस्कृति की वजह से. खैर, इस पर निश्चित तौर पर मैं कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ. लेकिन यह कह सकता हूँ कि गधे पर जरूरत से ज़्यादा बोझ लादा जाता देख कई बार मेरे आंसू निकले हैं.

    लावण्या जी, अशोक भाई का धन्यवाद मेरी हौसला अफजाई के लिए.

    अविनाश भाई, इस प्यारी टिप्पणी के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया. प्यारी इसलिए कि रानी बिटिया की बात हुई है. आप कितना बड़ा दिल रखते हैं, जाहिर हो गया है. अब तक इतने प्यार से किसी ने किसी की पोस्ट को अपने जिगर के टुकड़े के साथ नहीं जोड़ा होगा. मेरे पास इस भाव को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं.

    मौज की बात यह है कि चार-छह अफराद यह कह चुके हैं कि इसे किसी पाठ्यक्रम में होना चाहिए. अलबत्ता मेरी कूवत इतनी नहीं है.

    लेकिन यह सब दीगर बात है. मैं वादा करता हूँ कि अगर जीता रहा तो बिटिया रानी को यह कविता अपने हाथों से लिख कर स्वयं भेंट करूंगा.

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  7. अमां यार! ये तुमने कैसे पकड़ा? लगता है तुम भी खटमलों वाली खाट पर सो चुके हो.
    वैसे ऐसी कविता आज तक मैनें नहीं पढ़ी थी जो पशु-पक्षियों की तरफ़ मनुष्य को लौटा दे. सलीम अली होते तो तुम्हें कलेजे से लगा लेते. अब ये मत पूछना कि सलीम अली कौन थे? पशु-पक्षियों के दूसरे गुण मनुष्यों ने अपना लिए हैं जिनका तुमने उल्लेख नहीं किया. शायद इस कविता को पढ़कर मनुष्य को सद्बुद्धि आए.
    लेकिन अब कोई फायदा नहीं है, पशुओं के ज़्यादा गुन मनुष्य ने अपना लिए हैं.

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  8. kya baat hai aapne wo gudh baat kahe di hai jo bahut kam log sochte hain
    ki bhagwan ki banayi har shay main kuch khas baat hai
    badhayi itni sunder rachna ke lekhan ke liye

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  9. अगर बुजर्गो की तरह सियाने बच्चे पढे तो प्रौढ कविता हो जायेगी नही तो अगर बच्चो जैसे बुजुर्ग पढे तो बाल कविता ॥जो पढ्कर समझे उनके लिये सिर्फ़ कविता हो जायेगी जो ना समझे उनके लिये कुछ लाइने ॥ बहुत खुब कहा है आपने

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