tag:blogger.com,1999:blog-4194829957225159901.post5840250428028253384..comments2023-04-26T08:16:39.306-07:00Comments on आज़ाद लब azad lub: तुझे सोमरस कहूं या शराब? (अन्तिम)विजयशंकर चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-4194829957225159901.post-49085806909168376662010-11-14T13:47:20.592-08:002010-11-14T13:47:20.592-08:00श्रंगार रस , वीर रस , वीभत्स रस हास्य रस आदि रस मन...श्रंगार रस , वीर रस , वीभत्स रस हास्य रस आदि रस मनुस्यो के मुख से उत्पन्न होते है एवं मनुष्यो के कानो द्वारा पिये जाते है और इनके पभाव भी अवश्य ही होते है वैसे ही वेद मे एक रस है जो देव पीते है उसे सोम रस कहा जाता है।<br />सोम रस वनानें की विधि पत्थर का खल और पत्थर का ही मूसल लीजियै मूसल को खल मे तल से ऊपर लटकता हुआ पहली दो अगुलियों एवं अंगूठे से मूसल का ऊपरी अंन्तिम सिरा पकड़े ,अब इस मूसल को मूसल के ऊपरी अन्तिम हिस्से को केन्द्र मे रखते हुये नीचे के हिस्से को इस प्रकार वृत्र गति दे कि मूसल खल के अन्दरूनी हिस्से मे लगातार स्वासतिक कृम से गतिमान हो , तव इसमे से जो ध्वनि उत्पन्न होती है यही सोम रस होता है ।<br />यह जब समझ मे आयेगा जव आप देवताऔ को समझ लेगे अन्यथा सोम रस को तरल पदार्थ मानते रहिये । सोमरस ध्बनि ही है और वही देवता पी भी सकते है उदाहरणार्थ वायुदेवsubodh dixithttps://www.blogger.com/profile/00348760903391682639noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4194829957225159901.post-217395538827635052008-06-03T01:19:00.000-07:002008-06-03T01:19:00.000-07:00अच्छी और मजेदार जानकारी थी ॥आशा है हमारी इस टिप्पण...अच्छी और मजेदार जानकारी थी ॥<BR/><BR/>आशा है हमारी इस टिप्पणी से सनके मुनी को थोडी शांती मिलेगी ॥दीपकhttps://www.blogger.com/profile/08603794903246258197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4194829957225159901.post-33173369651490258442008-06-02T05:20:00.000-07:002008-06-02T05:20:00.000-07:00अरुणजी और अशोकजी ने बचा लिया. निश्चित ही स्वर्ग मे...अरुणजी और अशोकजी ने बचा लिया. निश्चित ही स्वर्ग में इन नरपुन्गवों की सीट रिजर्व हो गयी है.<BR/><BR/>हे ईश्वर! यह कैसा अनर्थ होने जा रहा था. हम पति-पत्नी घी में चुपड़ी रोटियाँ लेकर सनके हुए दिक् ऋषि का पीछा करने लगे. ऋषि को दुर्वासा के टक्कर का क्रोध था. वह पैदल चलते थे और हम भागते थे. आख़िर को वह भेडाघाट (जबलपुर) जा पहुंचे और नर्मदा मैया के जल-प्रपात में ज्यों ही कूदने को उद्यत हुए कि मैंने और मेरी 'जनानी' ने पैर पकड़ लिए और शुभसंदेश कह सुनाया- 'ऋषिवर, दो टिप्पणियाँ आ चुकी हैं बाकी की रास्ते में हैं!'<BR/><BR/>ऋषिवर का तो जैसे जक्का खुल गया. उस वक्त उनके मुंह से जो निकला, वह हमने नोट कर लिया है- <BR/><BR/>'हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूं जिगर को मैं<BR/>मखदूर हूँ तो साथ रखूँ नौहागर को मैं.'<BR/><BR/>हमारी समझ में यह शेर नहीं आया तो दिक् ऋषि ने हमें दिक करने का इरादा त्याग दिया और हमारी अक्ल पर तरस खाते हुए मरना कैंसल कर वह हमारे साथ मुर्गीखेत (जिस क्षेत्र में उन्होंने सोमरस कथा का पारायण किया था) की झोपड़ी में आ गए. सकुशल हैं. शेर कह रहे थे कि 'दण्डकवाला भभका तो फकत बहाना था, हमें तो ज़ोर टिप्पणियों का आजमाना था.' जान पड़ता है कुछ दिन कविता-शविता और शेरो-शायरी की बातें करेंगे!!!!!विजयशंकर चतुर्वेदीhttps://www.blogger.com/profile/12281664813118337201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4194829957225159901.post-72509028585261505292008-06-02T04:15:00.000-07:002008-06-02T04:15:00.000-07:00कलयुग के इस उत्थान काल में सत्ताधारियों द्वारा दण्...कलयुग के इस उत्थान काल में सत्ताधारियों द्वारा दण्डकारण्य या किसी भी अरण्य-एकान्त में राजकीय स्वीकृति के बिना इस महापेय का प्राइवेट उत्पादन निषिद्ध किया जा चुका है, हे ऋषिप्रवर! इस कार्य में संलग्न पाए जाने पर बन्दी बनाने का प्रावधान है. मेरा विचार है दण्डकारण्य जाने का आपका निर्णय एक बार और विचार किये जाने योग्य तो है ही ...<BR/><BR/>... कहने का मतलब है अपना पसन्दीदा ब्रान्ड बता देवें, कुछेक पेटियां आप तक भिजवा दी जाएंगी.<BR/><BR/>अच्छी ज्ञानवर्धक रही यह सीरीज़.Ashok Pandehttps://www.blogger.com/profile/03581812032169531479noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4194829957225159901.post-90405557074893746232008-06-01T22:59:00.000-07:002008-06-01T22:59:00.000-07:00इस रोचक सीरीज की अन्तिम किस्तके सम्मान में दो शेर....इस रोचक सीरीज की अन्तिम किस्त<BR/>के सम्मान में दो शेर<BR/>................<BR/>काजू भुनी है प्लेट में <BR/>व्हिस्की गिलास में<BR/>उतरा है रामराज <BR/>विधायक निवास में <BR/>- अदम गोंडवी<BR/>....................<BR/> <BR/>ये तौहीन-ए-बादानोशी है <BR/>लोग पानी मिला के पीते हैं<BR/>जिनको पीने का कुछ सलीका है<BR/>जिंदगानी मिला के पीते हैं <BR/>- shamim farhatArun Adityahttps://www.blogger.com/profile/11120845910831679889noreply@blogger.com