हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में प्रोफेसर कमला प्रसाद ने महत्वपूर्ण कार्य किया है. पिछले कई वर्षों से वह प्रगतिशील 'वसुधा' का सम्पादन कर रहे हैं और वर्त्तमान में प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव हैं. उन्होंने जाने कितने ही कवियों-लेखकों को पुष्पित-पल्लवित किया है. कमला प्रसाद जी की राष्ट्रीय स्तर पर सक्रियता देखते ही बनती है. खराब स्वास्थ्य के बावजूद संगठन के कार्यों के लिए उनका एक पैर घर में तो दूसरा ट्रेन में होता है. लेकिन पिछले दिनों 'वसुधा' और प्रलेस के दामन पर आरोपों के कुछ छीटें पड़े तो उनका दुखी होना स्वाभाविक था. उन्होंने बेहद संयत ढंग से फोन पर अपनी बात कुछ इस अंदाज़ में रखी-
पहली बात तो यह है कि जो राशि 'वसुधा' को पुरस्कारस्वरूप मिली थी वह फोर्ड फ़ाउंडेशन की नहीं थी. चूंकि 'वसुधा' प्रगतिशील लेखक संघ की पत्रिका है इसलिए उसे इस तरह के आरोपों एवं विवादों से बचाने के लिए हमने एक पत्र के साथ समूची राशि चेक के जरिये वापस कर दी है. यह फैसला भी मेरा निजी फैसला नहीं, सम्पादक मंडल की बैठक में लिया गया फैसला था. दूसरे जो आरोप हैं वे कमला प्रसाद पर व्यक्तिगत रूप से नहीं हैं, प्रगतिशील लेखक संघ पर हैं. उन आरोपों पर संगठन चर्चा करेगा और जो भी फैसला होगा वह प्रेस को बता दिया जाएगा.
रही ज्ञानरंजन जी की बात, तो अगर वह कहते हैं कि मैंने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ मंच साझा कर लिया है तो वह इसका सबूत प्रस्तुत करें. वह सुनी-सुनाई बातों पर आरोप लगाया करते हैं. वह मेरा रमन सिंह के साथ एक चित्र ही दिखा दें.
मेरा कहना है कि सामूहिक जीवन जनतंत्र की सबसे बड़ी ताकत होती है. समूह या सामूहिक जीवन को खंडित करना उचित बात नहीं है. जिसे कोई बात कहानी है उसे एक कार्यकर्ता की तरह बात करना चाहिए..विचारक की तरह नहीं..संगठन के बाहर के आदमी की तरह आरोप नहीं लगाना चाहिए. कमला प्रसाद अकेले प्रलेस नहीं चला रहे हैं, पूरा संगठन है. इसीलिये न तो कोई फैसला व्यक्तिगत कहा जा सकता और न ही आरोप व्यक्तिगत हो सकता है. इसीलिये मैं फिर कह रहा हूँ कि जो भी बातें प्रगतिशील लेखक संघ के बारे में पिछले दिनों सामने आयी हैं उन पर संगठन के अन्दर विचार किया जाएगा. इस सम्बन्ध में जल्द ही कार्यकारिणी की बैठक होने जा रही है. प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह और फोर्ड फाउंडेशन वाले विवाद पर मैं पहले ही विस्तृत प्रतिक्रिया दे चुका हूँ जो ब्लागों और समाचार पत्रों में छप चुकी है इसलिए उसे यहाँ दोहराने का अधिक अर्थ नहीं है. पिछले कुछ दशकों से मैं प्रलेस का कार्यकर्त्ता रहा हूँ और अब भी हूँ. जो जिम्मेदारियों दी जाती हैं उन्हें शक्ति भर निभाने का प्रयास करता हूँ. फिलहाल इतना ही...
ऊपर चित्र प्रमोद वर्मा स्मृति समारोह का है जिसमें कमला प्रसाद (बाएँ), आलोचक भगवान सिंह (पुरस्कार लेते हुए) और अशोक वाजपेयी (दायें) नजर आ रहे हैं. यह चित्र 'हिंद युग्म' से साभार लिया गया है.
ज्यादा नहीं कहुंगा
जवाब देंहटाएंपर कम से कम ज्ञान जी को यह आरोप लगाने का नै्तिक आधार नहीं है।
उत्तेजना के साथ संयम ज़रूरी है…कम से कम सार्वजनिक मंचों पर।
विघ्न संतोषियों की बात और है…