महाभियोग की वर्तमान प्रक्रिया को लेकर ट्रंप ने दलील पेश की है कि 1692-93 के दौरान सालेम, मैसाचुसेट्स में डायन और भूत-प्रेत बताकर फांसी पर चढ़ाई गई बदकिस्मत महिलाओं और पुरुषों के जितनी यथोचित प्रक्रिया से भी उन्हें वंचित रखा गया है. लेकिन ट्रंप चाहे जितना विक्टिम कार्ड खेलें और अपने पक्ष में सहानुभूति जुटाने की कोशिश कर लें, अमेरिकी संसद के उच्च सदन सीनेट में उनके खिलाफ ऐतिहासिक महाभियोग की सुनवाई शुरू हो चुकी है. ट्रंप की धुकधुकी का कारण मात्र यह नहीं है कि सदन में ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत बारीक है, बल्कि यह भी है कि आरोपों की गंभीर प्रकृति को देखते हुए शक्तिशाली मीडिया और अधिकतर अमेरिकी मतदाता उनके खिलाफ हो गए हैं, जिससे हार का खतरा बढ़ गया है. यदि ट्रंप से मतभेद रखने वाले कुछ रिपब्लिकन सांसदों ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट कर दिया तो उनको राष्ट्रपति पद से भी हटना पड़ जाएगा. लेकिन क्या वाकई ऐसा होगा?
ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने 2020 के आगामी राष्ट्रपति चुनाव के अपने संभावित प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन की छवि खराब करने के लिए यूक्रेन से गैरकानूनी रूप से मदद मांगी. बता दें कि बिडेन के बेटे हंटर यूक्रेन की एक ऊर्जा व गैस कंपनी ‘बरीस्मा’ में बड़े अधिकारी के पद पर हैं. ट्रंप ने हंटर बिडेन के कारोबार के बारे में जानकारियां मांगी थीं, जिनका इस्तेमाल वह अपने चुनाव प्रचार के दौरान कर सकते थे. दूसरा आरोप यह है कि उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए यूक्रेन को मिलने वाली आर्थिक मदद को रोक दिया और दस्तावेजों को दबाकर, सफेद झूठ और वाक्छल का इस्तेमाल करके, अपने स्टाफ या मंत्रिमंडल के किसी भी सदस्य को गवाही देने से रोक कर और कांग्रेस के सम्मनों का जवाब देने में नाकाम रहकर कांग्रेस को बाधित किया. अमेरिकी संविधान के मुताबिक ये दोनों ही ऐसे अपराध हैं, जिनके सिद्ध होने पर राष्ट्रपति को पद से हटाया जा सकता है.
अमेरिका के इतिहास में ऐसा तीसरी बार है जब सीनेट चैंबर उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में महाभियोग की अदालत में तब्दील हो गया हो! उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट ने सांसदों को सीनेट में मौजूद 99 सांसदों को शपथ दिलाई कि वे इस बारे में निष्पक्ष निर्णय लेंगे कि अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति को पद से हटाया जाए या नहीं. ट्रंप से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन के खिलाफ 1868 में और बिल क्लिंटन के खिलाफ 1998 में महाभियोग लगाया गया था, लेकिन अब तक किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा पद से हटाया नहीं जा सका. राष्ट्रपति निक्सन ने तो महाभियोग चलाए जाने से पहले ही अपना इस्तीफा सौंप दिया था और वाटरगेट टेप सार्वजनिक होने के बाद उन्होंने सबके सामने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह सिरे से झूठ बोलते चले आ रहे हैं.
एंड्रयू जॉनसन के विरुद्ध आरोप था कि उन्होंने तत्कालीन रक्षा सचिव एडविन स्तेंटन को हटाकर उनकी जगह मेजर जनरल लोरेंजो थॉमस को नियुक्त करने का प्रयास किया और अंततः जनरल उलिसिस ग्रांट को अंतरिम रक्षा सचिव नियुक्त किया, जो 1867 में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित टेन्योर ऑफ ऑफिस एक्ट का स्पष्ट उल्लंघन था. बिल क्लिंटन के विरुद्ध आरोप यह था कि उन्होंने अरकांसस राज्य की पूर्व कर्मचारी पाउला कॉर्बिन जोंस द्वारा दाखिल यौन अपराध के मुकदमे में स्वयं के, जोंस और मोनिका लेविंस्की के संबंधों को लेकर झूठ बोला और न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास किया.
पूर्व राष्ट्रपतियों की भांति ट्रंप के खिलाफ भी झूठ बोलने और अमेरिकी कांग्रेस को बाधित करने के ही आरोप लगे हैं. उन पर हैरानी भरा आरोप यह भी है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर जेलेंस्की यदि हंटर बिडेन के कारोबार की जांच करने की हामी भर देते तो आर्थिक सहायता बहाल हो जाती! अब संसद की निगरानी समिति ने नया रहस्योद्घाटन किया है कि संसद की स्वीकृति के बावजूद व्हाइट हाउस ने यूक्रेन को दी जाने वाली सैन्य सहायता पर भी रोक लगा रखी है, जो यह कानून का स्पष्ट उल्लंघन है. चूंकि अमेरिका में चुनावी मौसम शुरू हो चुका है इसलिए स्वाभाविक रूप से यह मुद्दा भी एक राजनीतिक बवंडर की शक्ल ले चुका है और ट्रंप बुरी तरह घिर गए हैं.
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पूर्व राष्ट्रपतियों की तरह ट्रंप भी महाभियोग से बच निकलेंगे या उन्हें पद से हटना पड़ेगा और कोई सजा मिलेगी? ट्रम्प मूल रूप से राजनेता नहीं, एक सफल निर्माण कारोबारी और होटल व्यापारी रहे हैं और इस धंधे को उन्होंने जिस अकड़ के साथ किया है, उसका वर्णन उन्होंने अपनी किताब ‘आर्ट ऑफ द डील’ में किया भी है. दक्षिणपंथियों द्वारा अपनाए जाने वाले सारे हथकंडे अपनाने में वह माहिर हैं. अमेरिकी अर्थव्यवस्था को खुद नए संकट में डालने वाले ट्रंप ने मतदाताओं को आशंकित करते हुए कहा है कि अगर चुनावों में डेमोक्रेटिक पार्टी की जीत होती है तो अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी और शेयर बाजार डूब जाएगा.
अमेरिका में ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी श्वेत वर्चस्ववाद की पैरोकार है. ट्रंप का मानना है कि अमेरिका में सिर्फ श्वेतों को ही सच्चे नागरिक के रूप में समझा जा सकता है और बाहर से आने वाले महज परिस्थितिजन्य अमेरिकी हैं. इसी मान्यता के चलते ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस की चार गैर-श्वेत महिला सदस्यों को अपने देश लौट जाने के लिए कह दिया था. उन्होंने बिना वारंट के छापा मारने को मंजूरी दी थी ताकि करीब 110 लाख ऐसे लोगों का प्रत्यर्पण किया जा सके, जिनके पास अमेरिकी दस्तावेज नहीं हैं, हालांकि ये लोग वर्षों से अमेरिका में रह रहे हैं. पिछले नवंबर में ट्रंप ने धमकी दी थी कि अमेरिका में जन्म लेने मात्र से नागरिकता मिलने की गारंटी खत्म की जा सकती है. जबकि अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन स्पष्ट करता है कि जो भी अमेरिका में जन्मा है, वह अमेरिकी नागरिक है.
श्वेत श्रेष्ठता वाला नस्लवाद रिपब्लिकन पार्टी के मूल में है, जो ट्रंप के हर बयान से झरता है. उन्होंने बेधड़क होकर मैक्सिको के निवासियों को "बलात्कारी", महिलाओं को "मादा सुअर" और "कुतियों" के रूप में चित्रित किया था और बड़ी ढिठाई के साथ यह घोषित किया था कि वह न्यूयॉर्क स्थित फिफ्थ एवेन्यू के ऐन बीच में खड़े होकर एक भी मतदाता खोए बगैर या कोई मुसीबत झेले बिना किसी को भी गोली से उड़ा सकते हैं! अश्वेत डेमोक्रेट बराक ओबामा का राष्ट्रपति चुना जाना रिपब्लिकन श्वेत नस्लवादियों के लिए नाकाबिले बर्दाश्त ठहरा था. उन्हें लगा कि जिस अमेरिका को वे जानते-पहचानते थे कि वह उनकी आंखों से सामने से नदारद हो गया है, उसे ‘पुनर्प्राप्त’ करना ही होगा. दरअसल डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका में समय चक्र को इतना पीछे ले जाना चाहते हैं, जहां चुने हुए जनप्रतिनिधि भी खुल कर नस्ली श्रेष्ठता की बोली बोल सकें.
इस मानसिकता को देखते हुए नहीं लगता कि रिपब्लिकन सांसदों के बहुमत वाली सीनेट में छोटे-मोटे आपसी मतभेदों के बावजूद ट्रंप के राष्ट्रपति पद को कोई खतरा पैदा होगा. ट्रम्प की नजर में चुनाव से ठीक पहले महाभियोग की कार्रवाई शुरू हो जाना सुर्खाब के पर लगने जैसी किसी उपलब्धि की तरह है, और इससे बच निकलने को, जिसका उनको भी पूरा यकीन है, वह अपने मुकुट में जड़े एक और हीरे की तरह बखान करते फिरेंगे.
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