गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

नफ़रत से नफ़रत

दोस्तों, अपने कविता संग्रह से बाहर की एक कविता चढ़ा रहा हूँ-

नफ़रत से नफ़रत

नफ़रत किधर से आती है

नफ़रत किधर को जाती है

क्या यह किसी से किसी को प्यार करना भी सिखाती है?



प्यार के लिए कितने लोगों ने जान गवांई होगी बूझो तो?

लेकिन नफ़रत से हुई मौतों के आंकड़े कोई पहेली नहीं हैं

दुनिया लहूलुहान है नफ़रत के पंजों से.



नफ़रत बिल्लियों की तरह कहीं भी आ-जा सकती है बेरोकटोक

तुम उस पर पहली नजर में शक नहीं कर सकते

रीढ़ की हड्डी में नागिन की तरह कुण्डली मारे बैठी रह सकती है बरसों बरस

वह कलम की स्याही बनकर झर सकती है मीठे-मीठे शब्दों की आड़ में

नफ़रत को झटक दो कि वह तुमको तुमसे ही बेदखल कर रही है



नफ़रत हर ख़ास-ओ-आम में मिल जाएगी

किसी पैमाने से उसे मापा नहीं जा सकता

खिड़की बंद करके उसे रोका नहीं जा सकता

नफ़रत हवाओं में उड़ती है विमानों के साथ-साथ

पानियों में घुलकर एक से दूसरे देश निकल जाती है



हर दरवाजे पर दस्तक देती फिरती है नफ़रत

कई बार वह आती है किताबों के पन्नों में दबी हुई

लच्छेदार बातों की शक्ल में तैरती हुई पहुँचती है तुम तक

गिरफ्त में ले लेती है विश्वामित्र की मेनका बनकर

नफ़रत एक नशा है जो आत्मा को फाड़ देती है दूध की तरह



नफ़रत कब तलब बन जाती है यह पता भी नहीं चलता

हम रोज सुबह पछताते हैं कि अब से नहीं करेंगे नफ़रत

लेकिन नफ़रत के माहौल में करते हैं सुबह से शाम तक नफ़रत

हम भुलाते जाते हैं सब कुछ नफ़रत की पिनक में

फिर वह ऐसा सब कुछ भुला देती है जो जरूरी है इंसान के हक़ में



वैसे सही जगह की जाए तो नफ़रत भी बुरी चीज़ नहीं

पर यह क्या कि दुनिया की हर चीज़ से नफ़रत की जाए!

नफ़रत करो तो ऐसी कि जैसे नेवला साँप से करता है

शिकार शिकारी से करता है

बकिया मिसालों के लिए अपने आस पास ख़ुद ढूँढ़ो

कि कौन किससे किस कदर और क्यों करता है नफ़रत



वैसे भी प्यार का रास्ता आम रास्ता नहीं है

इसलिए नफ़रत से जमकर नफ़रत करो

कि नफ़रत हमारे और तुम्हारे बीच नफ़रत बनकर खड़ी है.

-विजयशंकर चतुर्वेदी

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