शिवसेना ने जो बोया था, महाराष्ट्र नव निर्माण सेना उसे काटने की कोशिश कर रही है. राज ठाकरे की पैदाइश से भी पहले शिवसेना ने 'उठाओ लुँगी, बजाओ पुंगी' का नारा उत्तर भारतीयों के खिलाफ नहीं बल्कि पिछली सदी के सातवें दशक में दक्षिण भारतीयों के ख़िलाफ़ दिया था और हमले किए थे. इसी की चपेट में जोगेश्वरी और गोरेगाँव के तबेले भी आए थे और लोगों को जान बचाकर उत्तर-दक्षिण भारत भागना पड़ा था.
'लाल बावटा' की तब बड़ी ताकत थी. यह मिलों का दौर था. वामपंथी यूनियनें तगड़ी थीं. युवा बाल ठाकरे ने 'फ्री प्रेस जनरल' में कार्टून बनाना छोड़कर मराठी अस्मिता के नाम पर शिवसेना का गठन किया. कहने वाले कहते हैं कि यह कांग्रेस की शह पर हुआ था ताकि वाम पंथियों की ताकत मुम्बई और महाराष्ट्र से ख़त्म की जा सके. असलियत जो भी रही हो, नतीजा वही हुआ कि वाम पंथी ताकतों का मुबई से सफाया हो गया, परेल इलाके में शक्तिशाली वाम पंथी नेता की हत्या कर दी गयी. और यूनियनों पर शिवसेना का नियंत्रण होने लगा.
शिवसेना और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना की हरकतों, हालत और हालात में काफी समानताएं हैं. शिवसेना भी तब सड़कों पर नंगा नाच करती थी, बाद में भी करती रही; मनसे भी कर रही है. दोनों पार्टियां 'मराठी माणूस' की राजनीति करने वाली हैं. शिवसेना की हिंसा को भी कांग्रेस की शह बताया जाता था और आज भी लोग यही समझ रहे हैं कि मनसे के कार्यकर्ता जब गरीब टैक्सी वालों तथा पानी पूरी, वडा पाव वालों के साथ मार पीट कर रहे हैं तो कांग्रेस की शह पर ही पुलिस मूक तमाशा देखती रहती है.
इस विश्लेषण में हम यह भूल जाते हैं कि पुलिस कहीं की भी हो, ख़ुद आगे बढ़कर दंगाइयों को नहीं रोकती. यह एक आम पुलिसिया प्रवृत्ति है. यूपी, बिहार, दिल्ली, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गुजरात.. जहाँ कहीं भी भीड़ की हिंसा देखी गयी है वहाँ पुलिस मूक दर्शक ही रही है. सब कुछ निबट जाने तथा 'ऊपर' से दबाव पड़ने के बाद पुलिस लाठियाँ भांजती नज़र आती है, मुबई में ही यही देखा गया.
जो लोग मनसे विरुद्ध एक 'उत्तर भारतीय मनसे' बनाने की वकालत कर रहे हैं उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि ज़बानी ज़मा खर्च करना सुरक्षित रहने तथा लोगों की नज़र में वीर बनने का तरीका हो सकता है लेकिन सड़क पर उतर कर लाठी गोली चलाना काफी मुश्किल काम है. वह भी ऐसी धरती पर जहाँ का आपने अन्न खाया है, जहाँ की कमाई से आप अपने बीवी-बच्चे पाल रहे हैं.
ऐसे लोगों से मैं पूछता हूँ कि जब मनसे ने रेलवे भर्ती बोर्ड की मुम्बई परीक्षा देने आये हजारों परप्रांतीय छात्रों के साथ कल्याण में मारपीट की थी तब इन्होने क्यों कोई जुलूस या मोर्चा नहीं लिकाला? पिछले साल जब सब्जियों की खेती करने वाले निरीह बिहारी मजदूरों के साथ गंदे पानी का इस्तेमाल करने का आरोप लगाकर खेतों में जाकर मारपीट की गयी थी तब ये कहाँ सो रहे थे?
...और जब यूपी-बिहार से आने वाली ट्रेनों से उतरने वाले गरीब लोगों के साथ रेलवे स्टेशनों पर पुलिसिया बर्ताव होता है तब किसी को बुरा क्यों नहीं लगता? कोई विवाद होने की सूरत में जब पुलिस वाले आपका 'उपनाम' देख कर रपट दर्ज करने या न करने का फैसला लेते हैं तब ये क्या करते हैं? राशन कार्ड बनवाने की लाइन में खड़े आदमी को यूपी-बिहार-बंगाल का होने की वजह से सरकारी कर्मचारी ही कैसी-कैसी गालियाँ देते हैं, कभी आपने सुना है? क्या यह सब आज शुरू हुआ है? मैंने ऊपर कहा है कि यह सब शिवसेना का बोया हुआ है. उसने महाराष्ट्र की पुलिस को अंग्रेजों के ज़माने की पुलिस (भारतीयों के ख़िलाफ़) बना दिया है.
'बड़े' लोग इसलिए भयभीत हैं कि कहीं यह मामला उनके घर तक न पहुँच जाए. अब तक गरीब पिटता रहा तो ठीक था. लेकिन अब पानी इनके सर से ऊपर बहने लगा है. ये लोग हिंसा का जवाब हिंसा से देने की बातें करने लगे हैं. लेकिन क्या इन्हें नहीं लगता कि जब हिंसा बढ़ेगी तो ये हवाई जहाज या रेल के एसी डिब्बे में घुसकर भाग खड़े होंगे और गरीब बेचारा सड़कों पर मारा काटा जायेगा. मेरे एक जान-पहचाने वाले उत्तर भारतीय ने दस साल पहले यहीं 'उत्तर सेना' बनायी थी और घाटकोपर की एक गंदी खोली में रहता था. उसने मध्य और पश्चिम रेलवे ट्रैक के बगल की दीवारें कई जगह 'उत्तर सेना' के बैनरों से पोत दी थीं. आज न उस ' शूरवीर' का कहीं पता है न उसकी सेना का.
हम सभी जानते हैं कि राज ठाकरे असंवैधानिक काम कर रहे हैं. उनका यह कदम देश को तोड़ने वाला है. उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल देना चाहिए. लेकिन उन हजारों लोगों का क्या करेंगे जो उनके पीछे इसी समाज में रह जायेंगे. राज ठाकरे किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि नफ़रत की उस राजनीति का नाम है जो भाषा, क्षेत्र, वर्ण, जाति और सम्प्रदाय के नाम पर भारतीय जनता को बांटने का काम करती है. यह भावना समूल नष्ट करने की जरूरत है.
और उन कांग्रेसी सरकारों का क्या करेंगे जो शिवसेना से लेकर महाराष्ट्र नव निर्माण सेना तक बार-बार ऐसी असंवैधानिक गतिविधियों की देख-रेख करती रही हैं?
-विजयशंकर चतुर्वेदी.
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Sir, main aapke vichaaron se puri tareh sehmat hoon. - Shailesh Narwade
जवाब देंहटाएंSir, meraa bhi article "Nakhre Sania Mirza ke" bhi padhe. Thik aapke article ke upar hai. - Shailesh Narwade
जवाब देंहटाएंKya Raj Thakre ka zawab uttar bharat mein marathion ko pidit karke diya ja sakta hai?
जवाब देंहटाएंUttar bharat mein rehnein wale marathi bhaeeyo se nivedan hai ki woh Raj Thakre ki bhartsana karein,
Nahin toh aapke saath bhee wahi ho sakta hai jo mumbai mein biharion aur purbiyon ke saath ho raha hai..........?
आपका लेख विचार करने योग्य है और इस पर हम सभी देश वासियो को विचार करना चाहिए. मैं आपके विचारो से सहमत हूँ
जवाब देंहटाएंआपके विचारों से सहमत हूँ कि राज ठाकरे असंवैधानिक काम कर रहे हैं। उनका यह कदम देश को तोड़ने वाला है। उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल देना चाहिए और इस मुद्दे पर सभी देश वासियो को विचार करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंविजय जी, नमस्कार
जवाब देंहटाएंभड़ास में अपने लेख पर आपकी टिप्पणी देखी.
इसका आशय क्या है...?
मेरी समझ में नहीं आया.
आजाद लब को कबीरा का प्रणाम।
जवाब देंहटाएंसाहब बिल्कुल सही लिखा है। लेकिन मनस अथवा 'उत्तर भारतीय मनसे' से कौन कमबख्त घबराता है। सभी जानते है अपनी गली में तो कुत्ते भी शेर होते है, और गली के इन भोकने वालो को नजरअंदाज करने में ही समझदारी भी समझी जाती है। राज बालासाहेब कभी अपनी दुनिया से बाहर तो आये जितने मराठी माणूस बंबई में है उससे भी कही अधिक उन्हे ब्रह्नमहाराष्ट्र में मिलेंगे। मैं भी हिन्दी भाषी प्रदेश में रहने वाला एक मराठी माणूस आहे! मुझे इसपर न गर्व है न शर्म। लेकिन हा इतना जरूर कह सकता हू कि राज बालासाहेब जैसो की करनी पर शर्मिदा ही हुवा जा सकता है। शिवाजी इन मुर्खो को सदबुद्धि दे।