मंगलवार, 1 जुलाई 2008

'खबरों' का सिलसिला लगातार 'ज़ारी' क्यों है?





हिन्दी समाचार चैनलों के टीवी एंकरों की भाषा पर काफी बातें कही-सुनी जा चुकी हैं लेकिन वे नहीं सुधरे। गुणीजनों की निगाहें नुक्तों और उच्चारण पर भी गयी हैं, लेकिन एक बात पर इनका भी ध्यान नहीं गया. बात एनडीटीवी, इंडिया टीवी, सहारा, आईबीएन ७ या इसी तरह के अन्य टीवी समाचार चैनलों की है. जिन चैनलों में कई दिनों से यह लाइन नहीं सुनी, पहले वे भी इसी रोग से ग्रस्त थे.


बरसों से देखता-सुनता आ रहा हूं और आप भी देख-सुन रहे होंगे। अक्सर ब्रेक लेने से पहले एंकर यह पंक्ति उचारता है-"'खबरों' का सिलसिला लगातार 'ज़ारी' है."

औरों की तरह मैं भी यह मानता हूं कि हिंदी टीवी समाचार चैनलों में भाषा के बड़े-बड़े जानकार बैठे हैं लेकिन किसी का ध्यान इतने वर्षों में इस दारुण चूक पर नहीं गया।
उपर्युक्त पंक्ति में तीन शब्द हैं सिलसिला, लगातार और जारी। देखने की बात यह है कि इन तीनों शब्दों में एक ही भाव अंतर्निहित है और वह है 'निरंतरता.' मतलब यह हुआ कि हम एक भाव और एक ही गतिविधि को तीन बार कहते जाते हैं. यह तो वही बात हो गयी जैसे कि कोई कहे- 'मैं अभी वापस लौटता हूं।'
इसमें वापस होने में ही लौटने का भाव निहित है. इसीलिये वापस लौटने का प्रयोग बेजा हो जाता है. ठीक इसी प्रकार ख़बरों का सिलसिला जारी रहने का प्रयोग गलत है.

इसमें 3 अलग-अलग वाक्य बनते हैं‌-
१) ख़बरों का सिलसिला बना रहेगा,
२) हम ख़बरें लगातार दिखाते रहेंगे और
३) ख़बरें जारी रहेंगी।
अगर चैनल वाले चाहें तो इन 3 अलग-अलग पंक्तियों से 3 चैनलों का काम चल सकता है. मैं ये पंक्तियां उन्हें मुफ्त में देने को तैयार हूं. आप लोग क्या कहते हैं?

8 टिप्‍पणियां:

  1. गधों की क्यों बात करते हैं विजय भाई? एक तो 'जारी' को सब के सब 'ज़ारी' कहते हैं ...

    चलने दीजिये उनका व्याकरण/उच्चारण. हमारा अपना चलेगा.

    मुझे ज़्यादातर न्यूज़रीडरों को देखकर बहुत अजीब सा भाव महसूस होता है. किसी लिजलिजे कीचभरे लौंदे को देखने का सा. ऐसे लौंदे कम-अज़-कम मेरी चिन्ताओं के विषय नहीं बनते.

    मैं कहता हूं "Let the people grow into good viewers first". सब कुछ अपने आप जल्दी-जल्दी फ़िट-फ़ाट हो जाएगा.

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  2. अशोक भाई, फिर ज़ारी के बाद सब जाहिर कर देते हैं :)
    विजय जी मजेदार है ये पोस्ट। मगर आपके मुफ्त के वाक्य कोई भी लेने नहीं आएगा।
    जहां इन लोगो के लिए प्राणी विशेष का नाम लेने की बात है , अशोक जी ने बेचारे बैसाखनंदन की बेइज्जती कर दी है। वो बेचारा तो वहीं चरित्र निभा रहा है जो उसे ईश्वर ने दिया है। मेहनती है, ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं सुनाता। सिलसिले को लगातार जारी नहीं रखता है बल्कि जारी रखने के लिए "लगा" रहता है।
    बैसाखनंदन नाम का प्राणी अपने मालिक की उस अंदाज़ में अनदेखी नहीं करता जिस अंदाज़ में "वे" प्राणी अपने मालिक यानी दर्शकों की करते हैं। दर्शक उनसे जिस राह चलने की उम्मीद करता है , उसके उलट वे चल रहे हैं।
    वे कुछ और हो सकते हैं , गधे तो नहीं हो सकते ।

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  3. काहे मुफ्त बांट रहे हैं मेरे भाई. बहुत मूल्यवान सलाहें हैं. कुछ तो चार्ज रखिये. :)

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  4. हिन्दी खबर चैनलों की भाषा बहुत फूहड़ और दयनीय है इसमें कोई शक नही !
    अशोक जी की बात से भी सहमत हूँ !

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  5. अशोक भाई, अजित भाई, समीर जी, सुजाता जी, टीवी समाचार वाले पहले ये मानें तो कि कहीं कुछ गड़बड़ है!

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  6. सही चीज़ पकड़ी है । लेकिन खुद को महापंडित माननेवाले ये लोग अपनी गलती न तो मानेंगे और न सुधारेंगे- subhash dave

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  7. विजय जी , वे सब मानते और जानते हैं ......पर दुखद है कि उनके लिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा ही नही है ।

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  8. गांव गया था देर से पढा इसके लिये माफी ..मजा आ गया ..चैनल वालों ने तो भाषा की बैंड बजा दी है ..मुफ्त में आपने प्रसाद बांट दिया देखना है इसको अमल में सबसे पहले कौन लाता है।

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