यह न समझिए कि महिलाओं की कोई जय-पराजय झूठ-मूठ हो सकती है. इससे ज्यादा अहंवादी पुरुषों के परनाले आज भी खुले हुए हैं. अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं. तथाकथित 'नारी आन्दोलन' एक अलग तरह की व्यवस्था है. लोग इसे माने या न माने लेकिन एक अद्भुत प्यार मोहल्ला में माताओं-बहनों का देखा गया है! मुगालता ये हो सकता है कि मैंने एक विषय उठाया. टिप्पणियाँ वहाँ पहले पहल कमाल की आयीं! लेकिन इससे ये भी जाहिर होता है कि ब्लॉग जगत की महत्वपूर्ण महिलाएँ सिर्फ़ और सिर्फ़ परीपैकर बनकर नहीं रहना चाहतीं. वे साफ-सुथरा विचार-विमर्श चाहती हैं.
उनकी इस पहल का शुक्रिया!
...और जी पहले पहल माताओं-बहनों की इतनी टिप्पणियाँ किसी मोहल्ले में हो जाएँ तो ये समझना चाइये कि वे कुछ सार्थक चाहती हैं. वरना तो जी झाड़ू आन्दोलन चलेगा!
चंद शुरुआती प्रतिक्रियाएँ देखिए-
Nirmla Kapila said...
aapane bilkul sahi aavaaj uthaai hai main aapse poori tarah sehmat hoon
January 15, 2009 4:14 PM
Mired Mirage said...
यदि लोग इनके समाचारों में साहित्य के बारे में सुनते सुनते साहित्य में रुचि लेने लग गए तो फिर टी वी से चिपके कैसे रह पाएँगे?
January 15, 2009 4:26 PM
Dipti said...
मुझे नहीं लगता कि ये हालत महज न्यूज़ चैनलों की हैं। कई ऐसे न्यूज़ पेपर भी इस लिस्ट में शामिल हैं जो पहले तो व्यंग या कहानी का कॉलम निकालते हैं, लेकिन कुछ दिनों में ही उसकी जगह भविष्य और व्यक्तिगत समस्याओं का कॉलम शुरु कर देते हैं। ये सब टीआरपी का खेल है और कुछ नहीं...
January 15, 2009 5:40 PM
sareetha said...
भारतीय संस्क्रति को तहस नहस करने की साज़िश है । देश का साहित्य कहीं ना कहीं देशी महक लिए होगा , जो संभव है उपभोक्तावाद के खिलाफ़ जाए । बाज़ार इसकी इजाज़त नहीं देता ।
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वे साफ-सुथरा विचार-विमर्श चाहती हैं..
जवाब देंहटाएंगनीमत है कि आपने यह नही कहा कि पता नही वे क्या चाहती हैं :)
और यह भी उम्मीद है कि आपका यह वाक्य - " लेकिन इससे ये भी जाहिर होता है कि ब्लॉग जगत की कुछ महत्वपूर्ण महिलाएँ सिर्फ़ और सिर्फ़ परीपैकर बनकर नहीं रहना चाहतीं .." बाकी की महत्वहीन और सिर्फ परीपैकर बन कर रहने वाली (जो कि मोहल्ला पर नही जातीं) महिलाओं के बीच एक विभेदक रेखा दिखाने की मंशा से नही लिखा गया होगा।
खैर ,
'सच्ची' विशेषण की ज़रूरत एक अन्य संकेत भी देती है।