This article is about lord shiva's booti 'bhang'. भारतवर्ष में भांग को 'शिवजी की बूटी' कहा और माना जाता है। भांग की महिमा में कई भजन और गीत भी रचे गए हैं, जिन्हें अनेक अवसरों पर खुलेआम गाया जाता है. समाज में भांग को सम्माननीय दर्ज़ा प्राप्त है. इसके उलट शराब liquer को नीची नज़र से देखा जाता है; और शराबी को तो ख़ैर नरक का कीड़ा मानता है समाज. मज़े की बात यह है कि भांग और शराब दोनों दिमाग़ में नशा पैदा करते हैं. और नशा करना भारतीय परम्परा Indian tradition में वर्जित है. कहा गया है कि नशा व्यक्ति को अंधा बना देता है. नशे में व्यक्ति विवेक खो बैठता है, वह पशु एवं नराधम हो जाता है. नशे में व्यक्ति अच्छे-बुरे और जायज-नाजायज का भेद करना भूल जाता है.
लेकिन पिछले दिनों मुझे मिले मेरे एक मित्र के पत्र ने भांग के प्रति मेरे मन में सम्मान पैदा कर दिया। मित्र खानदानी वैद्य हैं. उनका नाम है बृजेश शुक्ल. बहरहाल यह पत्र उन्होंने महाराष्ट्र सरकार Maharashtr government तक अपनी गुहार पहुंचाने के इरादे से लिखा है. मुख्तसर में कहूं तो वह दुखी हैं कि जब यह सरकार ताड़ी-माड़ी, देसी-विदेशी शराब के ठेकों को लाइसेंस ज़ारी करती है तो भांग को क्यों नहीं? आख़िर यूपी-एमपी UP, MP में तो भांग के ठेके दिए जाते हैं. वहाँ इसके शौकीन सुबह-शाम लाइन लगाकर ठंडई के बहाने सेवन करते हैं और मस्त रहते हैं.
निवेदन:- मित्र का महाराष्ट्र सरकार से अनुरोध है कि अगर भांग के ठेके खोल दिए जाएं तो उसे अन्य मादक द्रव्यों की ही तरह इससे आबकारी शुल्क Excise Duty मिलेगा और सरकारी ख़जाने Exchequer को लाभ होगा। दूसरे शराब और ताड़ी-माड़ी से जो स्वास्थ्य हानि होती है वह भी नहीं होगी क्योकि भांग एक आयुर्वेदिक औषधि है. मेरे यह वैद्य मित्र भी भांग की उपलब्धता कुछ औषधियों के निर्माण के लिए चाहते हैं.
मित्रो, हमारे वैद्यराज की बात में दम लगता है. गोस्वामी तुलसीदास Tulsidas ने रामचरितमानस Ramcharitmanas के बालकाण्ड में दोहा लिखा है-
नाम राम को कलपतरु, कलि कल्याण निवास,
जो सुमिरत भयो भांग ते, तुलसी तुलसीदास. (दोहा क्रमांक- २६).
भांग के Medical लाभ:-
१) बवासीर piles, fishure & fistula (खूनी या वादी) में पीसकर गुदामार्ग में लेप करने से दर्द व जलन में राहत मिलती है.
२) इसके बीजों का तेल निकाल कर लगाने से चर्म रोगों skin deseases में आराम मिलता है.
३) इसके सेवन से मधुमेह Diabetes नहीं होता.
४) इसके सेवन से मर्दानगी Potency बनी रहती है।
मित्र का दावा है कि भांग एक सम्पूर्ण वनस्पति compelete hurb है। भांग की उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्राचीन ग्रंथों में यह श्लोक shloka मिलता है:-
जाता मंदरमंथानाज्जलनिधौ, पीयूषरूपा पूरा,
त्रैलोक्यई विजयप्रदेती विजया, श्री देवराज्ज्प्रिया,
लोकानां हितकाम्या क्षितितले, प्राप्ता नरैः कामदा,
सर्वातंक विनाश हर्षजननी, वै सेविता सर्वदा।
कथा है कि मंदराचल पर्वत से जब समुद्रमंथन किया गया था तब अमृत Nectur रूप से भांग की उत्पत्ति हुई थी। त्रिलोक विजयदायिनी होने से इसका नाम विजया हुआ. यह देवराज इन्द्र को प्यारी है.
मेरी दिलचस्पी बढ़ी तो मैंने यह जानकारी निकाली-- "भांग के पौधे नर व मादा दो प्रकार के होते हैं। नर पौधों के पत्तों से भांग मिलती है. उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में भांग की खेती के लिए अनुकूल जलवायु होती है. इसके पत्ते नीम के पत्तों की भांति लंबे और कंगूरेदार होते हैं; लेकिन आकार में कुछ छोटे. हर डंठल पर ६-७ पत्ते होते हैं. भांग का अर्क खींचने से एक प्रकार का तेल निकलता है जो अर्क पर तैरता है, उसमें भी भांग के समान खुशबू आती है और रंग कहवे की तरह होता है.
एक जानकारी और- 'भारतवर्ष के हेम्प ड्रेज कमीशन ने वर्ष १८९३-९४ में यह निर्णय दिया था कि भांग का साधारण उपयोग कोई शारीरिक हानि नहीं पहुंचाता और न ही इसका दिमाग़ पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यूनानी मत से भी यह उत्तम वनस्पति है जो कई रोगों का समूल विनाश कर देती है।'
भांग को कई नामों से जाना जाता है- अजया, विजया, त्रिलोक्य, मातुलि, मोहिनी, शिवप्रिया, उन्मत्तिनी, कामाग्नि, शिवा आदि। बांग्ला में इसे सिद्धि कहते हैं. अरबी में किन्नव, तमिल में भंगी, तेलुलू में वांगे याकू गंज केटू और लैटिन में इसको कैनाबिस सबोपा कहते हैं.
किसी कवि ने भांग की महिमा में कवित्त रचा है:-
मिर्च, मसाला, सौंफ कांसनी मिलाय भंग,
पीये तो अनेक रंग, अंग को उबारती.
जारती जलोदर, कठोदर भागंदर,
बवासीर, सन्निपात बावन बिदारती.
दाद के शिवराज खाज को ख़राब करे,
सईन की छींक, नासूर को निकारती.
काम के रोग, शोक, सेवत ही दूर करे,
कमर के दर्द को गारद कर डारती।
भाई साहब, इस भंग महिमा के बाद भी अब कहने को कुछ बचता है क्या? हमारी दिली इच्छा है कि महाराष्ट्र सरकार का कोई नुमाइंदा भी इसे पढ़े और हमारे वैद्यराज मित्र के हृदय की पीड़ा दूर करे.
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आर्युवेद के हिसाब से आपकी जानकारी रोचक लगी . पहले मुझे इतनी जानकारी नही थी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमिश्राजी, आपकी सहृदयता का धन्यवाद! आख़िर हम सब एक दूसरे से ही तो कुछ न कुछ सीखते हैं. सिलसिला बना रहे!
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारियाँ मिली भंग के बारे में. धन्यवाद सर.
जवाब देंहटाएंभैया भांग सीधे मस्तिश्क पर असर करती है। अगर सही मात्रा और शोधित रुप में इसका प्रयोग न किया जाए तो यह पागल( अनियंत्रित) मस्तिश्क बनाने में देर नहीं करती है। यह सीधे स्नायु-तंत्र को जकड़ लेती है इअसलिए इसको खाने या पिणे के बाद मन सैर करने लगता है।
जवाब देंहटाएंवाह तब तो रोज छानने लायक चीज है.
जवाब देंहटाएंदिलचस्प है...
जवाब देंहटाएंहम तो भांग के बारे में बस इत्तै जानते हैं कि पियो तो, बिना जहाज उड़ने का अहसास होता है। दो-तीन बार होली पर ठंडई ने अजब-गजब दुनिया में पहुंचा दिया था। अब ज्ञानवर्धन हुआ
जवाब देंहटाएंमालिक - भंग पिए लोगों के एक बीते समय खासे दीदार रहे इसलिए शांति से पढ़ लिया - हालत बयानी ख़ास नहीं थी उनकी - वैसे कुछ न कुछ तो हर वनस्पति में होगा ही - घास खाने से भी पेट की तकलीफ कम होती है - कम से कम पिंटू का मोती तो यही कहता रहा [ :-)] - मनीष
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