ज़्यादा दिन नहीं गुज़रे हैं जब लोग दूसरों को दिखा-दिखा कर बोतलबंद पानी किया करते थे गोया अमृतपान कर रहे हों! मोबाइल की तरह यह भी एक स्टेट्स सिंबल था. अब बोतलबंद पानी (बोतल 1 की हो या 100 लीटर की) पीना मजबूरी बन गया है. इस बाज़ारू दुनिया में जो इसे नहीं ख़रीद सकते वे तब भी प्यासे मर रहे थे, आज भी मर रहे हैं. भारत की आज़ादी के 70 वर्षों बाद सरकारी उपलब्धि यह है कि जल-स्रोतों को गटर बना दिया गया है और साफ पानी विलासी अमीरों का शग़ल लगता है. इसलिए चौंकिए मत और बोतलबंद पानी के बाद अब बोतलबंद हवा को स्टेटस सिंबल बनाने के लिए तैयार हो जाइए, क्योंकि वायु-प्रदूषण की मारी इस दुनिया में बाक़ायदा इसका व्यापार शुरू हो चुका है और भारत भी हवा व्यापारियों की ज़द में है. वायु-प्रदूषण के विविध कारण और समाधान उनकी चिंता का विषय नहीं हैं. वैसे भी मुनाफ़ापिस्सुओं के लिए हर संकट एक सुनहरी अवसर ही होता है.
विकास की अंधी दौड़ में शामिल चीन जैसे विकसित देशों की ऐसी पर्यावरणीय दुर्गति हुई है कि वहां लाखों लोग अभी से बोतलबंद हवा ख़रीदकर सांस ले रहे हैं. ‘बर्कले अर्थ’ की रपट के अनुसार चीन में वायु-प्रदूषण से रोज़ाना लगभग 4000 मौतें होती हैं! यही भय है कि बीजिंग समेत चीन के कई बड़े शहरों में बोतलबंद हवा का बिजनेस तेज़ी से फल-फूल रहा है. जल्द ही विकासशील भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा. कंक्रीट के जंगल खड़े करने की होड़ ने पर्यावरण में असंतुलन पैदा कर दिया है. इसका नतीजा यह है कि भारत के कुछ राज्यों में अप्रत्याशित 5080 किमी नया वन-क्षेत्र विकसित होने के बावजूद सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं. महानगरों में अपर्याप्त पर्यावरण संवर्धन व वायु-प्रदूषण पसली का दर्द बना हुआ है. जाहिर है ऐसे में पहाड़ों की ताज़गी देने वाली हवा के लुभावने पैकेट पानी की ही तरह हाथोंहाथ बिकेंगे. देश में बोतलबंद हवा जल्द ही हकीक़त और मजबूरी बन जाएगी. अभी वायु-प्रदूषण से बचने के लिए लोग दस्युओं की तरह घर से नाक-कान-मुंह बांध कर निकला करते हैं लेकिन जल्द ही वे आईसीयू में भर्ती किसी मरीज़ की भांति हवा की छोटी-बड़ी बोतलें गले में लटकाए नज़र आएंगे!
बिजनेसमैन पूरे विश्व में बहुत जल्द संभावनाएं सूंघ लिया करते हैं और उनके सेल्समैन हिमालय में भी बर्फ़ बेच आते हैं. सनातन संस्कृति वाले भारत में ज्ञानियों की धारणा थी कि धरती पर धूप-हवा-पानी सनातन तौर पर मुफ़्त और प्रचुर है लेकिन ‘वैश्वीकरण’ के इस दौर में पानी के बाद अब हवा भी बाज़ार में बिठा दी गई है. कनाडा की ‘वाइटैलिटी एयर बैंफ एंड लेक’ नामक कंपनी ने अपने यहां के चट्टानी पर्वतों और कंचन जल से घिरे प्राकृतिक हरे-भरे स्थलों की ताज़ा हवा बोतलों में बंद करके यूएसए और मध्य-पूर्व के देशों को बेचना शुरू कर दिया है. यह कंपनी कनाडा की दो स्थलों- बैंफ एवं लेक लुइस के निर्मल वातावरण से हवा को बोतलबंद कर रही हैं. ग्राहकी का आलम यह है कि उक्त कंपनी हवा बेचकर मालामाल हो रही है. चीन में तो क्रेज़ इस क़दर बढ़ गया है कि लोग बोतलबंद हवा ख़रीदकर जन्मदिन और शादियों में गिफ़्ट कर रहे हैं.
वाइटैलिटी एयर बैंफ एंड लेक ने शुद्ध हवा के अपने दो ब्रांड बाज़ार में उतारे थे- बैंफ एयर और लेक लुइस. कंपनी के संस्थापक मोजेज लेक ने 2014 में जब इस हवा का पहला पैकेट बेचा था तब उन्हें इसकी कल्पना भी नहीं रही होगी कि हवा का धंधा उनकी किस्मत बदल देगा. चीन में उन्हें इतना बड़ा बाज़ार मिला कि पिछले दिसंबर में दुकान का श्रीगणेश करने के तुरंत बाद ही 500 बोतलें पलक झपकते बिक गई थीं. बीजिंग में बैंफ एयर की 3 लीटर की बोतल आज लगभग 952 रुपए और 7.7 लीटर का बाटला 1542 रुपए में बिक रहा है.
दुनिया में हवा का बाज़ार बढ़ता देखकर ब्रिटेन के 27 वर्षीय लियो डे वाट्स भी ‘आएटहाएर’ कंपनी बनाकर शुद्ध हवा की खेती में कूद पड़े हैं और इस साल के शुरुआती तीन महीनों में ही हज़ारों पाउंड कमा चुके हैं. लियो की टीम शुद्ध हवा भरने सुबह 5 बजे ही ब्रिटेन के समरसेट, डोरसेट तथा वेल्स जैसे प्राकृतिक सुषमायुक्त इलाक़ों में जाती है और ग्राहकों की ख़ास मांगों के अनुरूप सप्लाई कर देती है. हवा के लिए लियो किसी दिन पहाड़ की चोटी पर चढ़ते हैं तो किसी दिन गहरी घाटियों में उतरते हैं. उनका मानना है कि अगर वायु-प्रदूषण का धरती पर यही हाल रहा तो निकट भविष्य में हज़ारों कंपनियां हवा के धंधे में उग आएंगी.
भारत में औद्योगिक शहरों की सांसें पहले से ही थमी हुई थीं, अब छोटे और मझोले शहरों का दम भी घुटने लगा है. केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की ताज़ा रपट कहती है कि सबसे प्रदूषित शहर मुजफ्फ़रपुर (बिहार) है और उसके बाद लखनऊ का नंबर आता है. यह आश्चर्यजनक है क्योंकि ये दोनों शहर उद्योगबहुल नहीं हैं! रपट से यह भी स्पष्ट हुआ है कि देश के 10 सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहरों में से 6 शहर औद्योगिक रूप से पिछड़े उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं जबकि औद्योगिक एवं आर्थिक गतिविधियों का केंद्र मुंबई, बंगलुरु और चेन्नई जैसे महानगरों में प्रदूषण उक्त शहरों से कम है. ऐसे में वायु-प्रदूषण को उद्योग-धंधों मात्र से सीधा जोड़ देना तर्कसंगत नहीं लगता. योजनाकारों व पर्यावरणविदों को इसका निदान और इलाज़ खोजना होगा. लखनऊ के बाद घटते क्रम में प्रदूषण-स्तर दिल्ली, वाराणसी, पटना, फ़रीदाबाद, कानपुर, आगरा, गया, नवी मुंबई, मुंबई और पंचकूला (हरियाणा) का है. अर्थात हवा की गुणवत्ता के आधार पर पंचकूला सबसे माकूल शहर है और मुजफ्फ़रपुर सर्वाधिक दमघोंटू!
घर-घर वायु-प्रदूषण के पसमंजर में अगर भारत जल्द ही हवा बेचने का केंद्र बन जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. मौक़े का फ़ायदा उठाने के लिए देसी-विदेशी कंपनियां भारत की नदी-घाटियों एवं पर्वतशृंखलाओं की ख़ाक छानती नज़र आने लगें तो अचंभित मत होइएगा. सरकार पर्यावरण के नियमों को शिथिल कर उन्हें हवा के अंधाधुंध दोहन का लाइसेंस जारी कर दे तब भी चकित मत होइएगा. शुद्ध हवा की पैकेजिंग के नाम पर अगर नदी-पहाड़ों की हवा अशुद्ध कर दी जाए तो उंगली मत उठाइगा. आख़िर यह सब आपकी बेहतरी के लिए किया जाएगा. भले ही आगे चलकर यही कंपनियां दूषित पानी की तर्ज़ पर हवा की जगह बोतलों में धुंआ भरकर बेचने लगें और लोगों को मजबूरी में वही पीना पड़े!
कनाडा की वाइटैलिटी एयर बैंफ एंड लेक कंपनी और ब्रिटेन की आएटहाएर कंपनी की भारत पर बराबर नज़र है. यहां वह किस भाव से हवा बेचेंगे यह समय आने पर जाहिर किया जाएगा. हालांकि विशेषज्ञ भारत में हवा-व्यापार को मुनाफ़े का सौदा नहीं मानते. उनकी आशंका है कि यह संपन्न लोगों का चोंचला ही बन कर रह जाएगा. देश का मध्यवर्ग और ग़रीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले करोड़ों लोग बच्चों का राशन-पानी तो ठीक से ख़रीद नहीं पाते; बाज़ार से हवा ख़रीद कर पीने की औक़ात कहां से पैदा करेंगे! यह और बात है कि पहले वे प्यास से मर रहे थे अब श्वांस से भी मरा करेंगे!
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