कल जे ई ई मेंस के रिजल्ट आ गए-
जिन सुधी अभिभावकों ने अपने पुत्र-पुत्रियों को उच्च चिकित्सा एवं तकनीकी शिक्षा दिलाने का सपना देख रखा है उनके लिए एक पांव पर खड़े होने का उष्ण मौसम आ गया है. मई और जून 2016 में कई प्रतियोगी परीक्षाएं होने जा रही हैं, जिनमें से प्रमुख हैं- एआईपीएमटी जो 1 मई को होनी है, क्लैट 8 मई को होगी, जेईई एडवांस्ड 22 मई को और सीईटी परीक्षा 2 जून को आयोजित होगी, 4 जून से द इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ़ इंडिया की परीक्षाएं शुरू हो रही हैं, 10 जून से भारतीय बीमा संस्थान की परीक्षाएं होंगी.
इन दिनों धुनी छात्र-छात्राएं कोचिंग क्लासों, स्टडी रूमों, पुस्तकालयों, गार्डनों, छतों, गलियारों आदि को अपना रीडिंग रूम बनाए हुए हैं और इस तपती-चुभती गर्मी में भी मेडिकल, इंजीनियरिंग, कानून और अन्य पाठ्यक्रमों में दाख़िले के लिए दिन-रात पसीना बहा रहे हैं.
माता-पिता उनके टेबल पर सर रख कर सो जाने की आदत पर पैनी नज़र रखे हुए हैं और चाय-पानी की सप्लाई में जरा भी कोताही नहीं बरत रहे. कुछ छात्रों के अभिभावक इस बात को लेकर भी माथा पकड़ कर बैठे हुए हैं कि कैसे उनके बच्चे ऊंची से ऊंची रैंक एवं अंक प्राप्त करें ताकि प्रतिष्ठित और मनचाहे शिक्षा संस्थानों में उन्हें आसानी से दाख़िला मिल जाए. किसी ठंडे पहाड़ी स्थल पर ग्रीष्म ऋतु का लुत्फ़ उठाने का ख़याल फ़िलहाल उनके दिमाग़ से कोसों दूर है.
मेरे एक पीडब्ल्यूडी इंजीनियर मित्र की बेटी को डीएवीवी इंदौर के अंडरग्रेजुएट कोर्स में दाख़िला लेना है. वह इतने बेताब हैं कि बेटी की जगह सीईटी का पूरा कार्यक्रम ख़ुद उन्होंने रट लिया है जबकि परीक्षा को अभी महीना भर से ज़्यादा समय बाक़ी है. वह एक सांस में बताते हैं- ‘कॉमन इंट्रेंस टेस्ट 2 जून को और पहली काउंसलिंग 23 को होनी है. कुल मिलाकर 35 कोर्सेस हैं, जिनके लिए इग्जाम्स 9 शहरों में होने हैं. इनके लिए एप्लीकेशन ऑनलाइन भी भरे जा सकते हैं. हमारा प्लान यही है. अच्छा हो अगर एग्जाम सेंटर अपने ही शहर में मिल जाए.’
इंटीरियर डेकोरेटर शादाब सिद्दीक़ी साहब चाहते हैं कि उनकी बेटी पढ़-लिख कर एमबीबीएस डॉक्टर बने. इसके लिए वह पिछले दो सालों से उसकी एआईपीएमटी (आल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट) की सख़्त तैयारी करा रहे थे. सीबीएसई द्वारा आयोजित इस टेस्ट की तारीख़ 1 मई मुकर्रर की गई है. इसे पास करने पर उनकी बेटी देशभर के मेडिकल कॉलेजों की 15 फीसदी मेरिट पोजीशन में शुमार हो जाएगी, और इस तरह शादाब साहब का सपना भी पूरा हो जाएगा.
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में दाख़िला पाने ने लिए पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट बख्शी जी का बेटा जी-तोड़ कोशिश कर रहा है. राजीव गांधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ, पटियाला की तरफ से आयोजित कॉमन लॉ एडमीशन टेस्ट (क्लैट) 8 मई को होना है जिसका नतीजा 23 मई को उसके सामने आ जाएगा. अगर कामयाब हो गया तो 1 जून से उसकी काउंसलिंग शुरू हो जाएगी.
मिसेज बख्शी ने पूरे मोहल्ले में मिठाइयां बांटने की तैयारियां अभी से कर रखी हैं लेकिन उनके मन में किंतु-परंतु भी व्यायाम कर रहा है. शेयर ब्रोकर भरत भाई का ब्लड प्रेशर 22 मई को होने जा रहे ‘द ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेईई) एडवांस्ड टेस्ट’ के दोनों पेपरों को लेकर बढ़ा हुआ है क्योंकि उनके बेटे की प्रॉपर तैयारी नहीं हो पाई; जबकि दोनों पेपर अनिवार्य हैं. इस टेस्ट के लिए 29 अप्रैल को रजिस्ट्रेशन शुरू होना है जिसकी स्कैन रिस्पॉन्स शीट 1 जून तक वेबसाइट पर दिखने लगेगी और 12 जून को उनके बेटे की क़िस्मत का फ़ैसला हो चुका होगा. पता नहीं भरत भाई 22 दिन का यह हिमयुग कैसे काटेंगे!
बच्चों की परवाह करने तक तो ठीक है लेकिन ‘थ्री ईडियट्स’ बार-बार देखने के बावजूद कैरियर को लेकर संतान से कहीं ज़्यादा माता-पिता द्वारा इतनी चिंता करना सचमुच चिंताजनक है. हमारे देश में कई प्रतियोगी परीक्षाएं होती रहती हैं. जैसे कि सिविल सेवा परीक्षा, इंजीनियरी सेवा परीक्षा, सीपीएमटी (CPMT), आईआईटी संयुक्त प्रवेश परीक्षा (IIT JEE), अखिल भारतीय इंजिनीयरिंग प्रवेश परीक्षा (AIEEE), सम्मिलित प्रवेश परीक्षा (कॉमन ऐडमिशन टेस्ट / CAT), प्रबंधन योग्यता परीक्षा (MAT), ओपेनमैट (OpenMAT), सार्वजनिक प्रवेश परीक्षा (कॉमन इंट्रैंस टेस्ट / CET), इंजीनियरी में स्नातक अभिरुचि परीक्षा या गेट (GATE), राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) की परीक्षा, सम्मिलित रक्षा सेवा परीक्षा (CDS), संयुक्त विधि प्रवेश परीक्षा (कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट / CLAT), यूजीसी राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (यूजीसी नेट अथवा NET), केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (Central Teacher Eligibility Test / CTET), संयुक्त प्रवेश स्क्रीनिंग परीक्षा (Joint Entrance Screening Test / JEST) आदि. उपर्युक्त परीक्षाओं में हम कभी पास होते हैं तो कभी फेल. लेकिन फेल होने पर हमें अपने सपने संतान के जरिए पूरा करने की ख़ब्त-सी सवार हो जाती है जो संतान के भी फेल हो जाने पर लगभग घातक सिद्ध होती है.
यहां किसी के बड़े-बड़े सपने देखने की मुख़ालिफ़त नहीं की जा रही है. लेकिन अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चे की सही क्षमता पहचानें. कई मामलों में यह क्षमता कम भी हो सकती है. दुनिया का हर बच्चा एकसमान नहीं हो सकता. इसके उलट होता यह है कि माता-पिता प्रतियोगी परीक्षा देने जा रहे बच्चे के फ़ॉर्म तक ख़ुद भरते हैं.
अरे! जो बच्चा अपनी परीक्षा का फ़ॉर्म खुद नहीं भर सकता, बैंक जाकर अपना डीडी नहीं बनवा सकता, उसे प्रशासनिक केंद्र तक कुरियर नहीं कर सकता, अपना इग्जाम सेंटर नहीं खोज सकता; वह आईएएस-आईपीएस या डॉक्टरी-इंजीनियरी का टेस्ट क्या खाकर पास करेगा! लेकिन नहीं साहब, चूंकि पड़ोसी के बच्चे ने अमुक टेस्ट पास किया है इसलिए अपने बच्चे को उससे आगे निकालना आपने अपना धर्म बना लिया है. प्रतिभा जाति-पांत की मोहताज नहीं होती. होना यह चाहिए कि आप अपने बच्चे को स्वाबलंबी बनाएं. उसे अपना काम ख़ुद करने दें और सीखने का मौक़ा दें. अक्सर देखा जाता है कि जो मां-बाप घर में पड़ा अख़बार तक ठीक से नहीं पढ़ते वे किताब में घुसे रहने को लेकर बच्चे के सर पर चौबीसों घंटे सवार रहते हैं. पहले आप मिसाल तो पेश कीजिए. बच्चा मां-बाप से जितना सीखता है, उतना उसे दुनिया की कोई कोचिंग नहीं सिखा सकती.
अभिभावकों द्वारा अपनी संतान से प्रतियोगी परीक्षा की समय-सारिणी के मुताबिक तैयारी कराने, प्रश्न-पत्रों का पैटर्न समझाने और उनके खाने-पीने का पूरा ख़याल रखने में कोई हर्ज़ नहीं है. लेकिन अगर अभिभावक यह मानकर चलने लगें कि सफलता सौ टका मिलनी ही मिलनी है तो यह अपनी ही संतान के साथ अन्याय होगा. कई बार अनेक प्रयासों के बावजूद सफलता नहीं मिलती. इसका अर्थ यह नहीं है कि अभिभावक और संतान की दुनिया ख़त्म हो गई.
पहले अभिभावक को असफलता का महत्त्व समझना पड़ेगा तब कहीं जाकर संतान में संघर्ष करने की शक्ति उत्पन्न होगी और एक दिन वह सफल होकर दिखाएगी. प्रतियोगी परीक्षा में पास होने के लिए अभिभावक को संतान के पीछे लट्ठ लेकर नहीं पड़ना चाहिए बल्कि उसे उचित माहौल और समय देना चाहिए. लेकिन होता यह है कि जैसे-जैसे परीक्षा का दिन नजदीक आता है, बच्चे से ज़्यादा अभिभावकों के दिल की धड़कनें तेज़ होने लगती हैं; जैसे कि उन्हें ख़ुद पर्चा हल करना हो! बच्चा कितनी भी मेहनत क्यों न कर ले, अभिभावक उसको लेकर अक्सर नर्वस नज़र आते हैं.
बड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं के इस मौसम में अगर आपका बच्चा भी किसी प्रतियोगी परीक्षा में बैठने जा रहा है तो उसकी आंखें सींच-सींचकर उसे रात-रात भर जगाने की बजाए नींद पूरी कर लेने दें. रात्रि-जागरण करके सुबह परीक्षा देने पहुंचे बच्चों को प्रश्न ही नहीं समझ में आते. आख़िरी मिनट में परीक्षा केंद्र पर पड़ाव डालकर बच्चे की आंखों तले किताबें अड़ाए रखना तो और भी बुरी बात है. आपको भले ही परीक्षा हॉल के गेट तक पूरी तैयारी करवाने की शांति मिल जाए लेकिन बच्चे का दिमाग़ अशांत हो जाएगा. वह भ्रमित भी हो सकता है और पर्चे में पूछे गए प्रश्नों का जवाब निल बटा सन्नाटा हो सकता है…और आपके सपनों पर पानी फिर सकता है. शुभ परीक्षा!
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