हाँ, तो पिछली पोस्ट में जो शेर मैंने आपको पढ़वाया था वह शेर कहा था जगतमोहन लाल रवां साहब ने.
मैं कह रहा था कि यह शेर दो दिन पहले सैयद रियाज़ रहीम साहब के साथ बातचीत के दौरान मेरे सामने आया. मैंने यह मिसरा तो बहुत सुन रखा है- 'ख़ूब गुज़रेगी जो मिल बैठेंगे दीवाने दो.' मक़बूलियत ऐसी कि यह लोगों की ज़बान पर है और इसका इस्तेमाल विज्ञापन तक में हुआ है. लेकिन 'क़ैस जंगल में अकेला है मुझे जाने दो' वाला मिसरा मैंने पहली बार सुना. (कई अच्छी बातें ज़िन्दगी में पहली बार ही होती हैं:))
बात आगे बढ़ी तो रियाज़ साहब ने इस शेर के ताल्लुक से जो कहा वह आपको भी सुनाता हूँ- 'इस शेर का नाम लिए बगैर उर्दू शायर की तारीख नामुकम्मल है क्योंकि यह शेर आमद (प्रवाह) का शेर है. शायरी के ताल्लुक से उर्दू में आमद और आवर्द- दो बातें कही जाती हैं. आवर्द की शायरी में फ़िक्र तो हो सकती है लेकिन ज़रूरी नहीं कि वह शायरी दिलों को छू जाए. जहां तक आमद की शायरी है तो वह दिलों को तो छूती ही है; इसके साथ-साथ सोचने के लिए नए रास्ते भी पैदा करती है.'
अब फ़ैसला आप कीजिए कि रवां साहब के इस शेर के ताल्लुक से रियाज़ साहब जो फ़रमा रहे थे वह दुरुस्त है या नहीं. मुझे तो एकदम दुरुस्त लगा जी!
रवां साहब के चंद और अश'आर पेश-ए-खिदमत हैं-
हिरास-ओ-हवस-ए-हयात-ए-फ़ानी न गयी
इस दिल से उम्मीद-ए-कामरानी न गयी
है संग-ए-मज़ार पर तेरा नाम रवां
मर कर भी उम्मीद-ए-ज़िंदगानी न गयी
पाबन्दि-ए-ज़ौक, अहल-ए-दिल क्या मा'नी
दिलचस्पि-ए-जिंस-ए-मुज़महल क्या मा'नी
ऐ नाज़िम-ए-कायनात कुछ तो बतला
आखिर ये तिलिस्म-ए-आब-ओ-गुल क्या मा'नी
धन्यवाद!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मेरी नई ग़ज़ल
प्यारे दोस्तो, बुजुर्ग कह गए हैं कि हमेशा ग़ुस्से और आक्रोश में भरे रहना सेहत के लिए ठीक नहीं होता। इसीलिए आज पेश कर रहा हूं अपनी एक रोमांटि...
-
आप सबने मोहम्मद रफ़ी के गाने 'बाबुल की दुवायें लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले' की पैरोडी सुनी होगी, जो इस तरह है- 'डाबर की दवा...
-
साथियो, इस बार कई दिन गाँव में डटा रहा. ठंड का लुत्फ़ उठाया. 'होरा' चाबा गया. भुने हुए आलू और भांटा (बैंगन) का भरता खाया गया. लहसन ...
-
इस बार जबलपुर जाने का ख़ुमार अलग रहा. अबकी होली के रंगों में कुछ वायवीय, कुछ शरीरी और कुछ अलौकिक अनुभूतियाँ घुली हुई थीं. संकोच के साथ सूचना ...
बहुत खूब गुजरेगी जब.... अंदाजे बयां खूबसूरत है . बधाई
जवाब देंहटाएंkya baat hae saab
जवाब देंहटाएंखूबसूरत तो है ही। अंदाजे बयाँ भी खूब है।
जवाब देंहटाएंआप तीनों भाइयों का धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहिरास-ओ-हवस-ए-हयात-ए-फ़ानी न गयी
जवाब देंहटाएंइस दिल से उम्मीद-ए-कामरानी न गयी
है संग-ए-मज़ार पर तेरा नाम रवां
मर कर भी उम्मीद-ए-ज़िंदगानी न गयी
पाबन्दि-ए-ज़ौक, अहल-ए-दिल क्या मा'नी
दिलचस्पि-ए-जिंस-ए-मुज़महल क्या मा'नी
ऐ नाज़िम-ए-कायनात कुछ तो बतला
आखिर ये तिलिस्म-ए-आब-ओ-गुल क्या मा'नी
no words ..excellent