सोमवार, 13 अप्रैल 2009

काला धन कैसे वापस लायेंगे आडवाणी जी?

काला धन छिपाने के धरती पर जो अन्य स्वर्ग हैं- जैसे मलयेशिया, फिलीपीन्स, उरुग्वे, कोस्टारिका, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड, बहामा, बरमुडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड और केमैन आइलैंड आदि- इनके नाम तो सब बता देंगे, लेकिन यहाँ कितने भारतीयों का कितना काला धन छिपा है, और इन भारतीयों में कितने कांग्रेसी हैं, कितने भाजपाई, कितने हिन्दू, कितने मुसलमान, कितने सिख, कितने ईसाई और इस मामले में ये सब हैं कितने बड़े मौसेरे भाई, यह कौन बताएगा?

ताजा हल्ला के अनुसार भारतीयों के १४५६ अरब डॉलर नकद रूप में स्विस बैंकों में रखे हुए हैं. यह सफ़ेद नहीं काला धन है. एक आँकड़ा और है- अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने देश की अर्थव्यवस्था में थोड़ी जान फूंकने के लिए जो ताज़ा स्टिम्युलस पैकेज मंजूर करवाया है वह राशि है ८३० अरब डॉलर. इसका अर्थ यह हुआ कि सिर्फ स्विस बैंकों में जमा भारतीयों का काला धन अमेरिकी स्टिम्युलस पैकेज से ६२५ अरब डॉलर अधिक है. रेखांकित करने वाली बात यह है कि यह मात्र स्विस बैंक में जमा काला धन है. भारतीयों के लिए मॉरीशस तो काला धन गलाने और कर चोरी का स्वर्ग है. वहां का पिटारा खुले तो क्या हाल हो!

अगस्त 1982 में भारत और मॉरीशस के साथ एक कर संधि हुई थी जिसको 'डबल टैक्सेशन एवोइडेन्स ट्रीटी' कहा जाता है. भारत ने इस संधि के तहत मॉरीशस निवासियों को भारत में शेयर की खरीद बिक्री पर हुई कमाई पर टैक्स न लेने का वचन दिया था. इसी तरह की छूट मॉरीशस ने भी दी.. भारतीय निवेशक राउंड ट्रिपिंग करते हैं. इसके तहत निवेशक विदेश में जाकर मॉरीशस के रास्ते धन वापस भारत ले आते हैं.

ऑर्गनाइजेशन ऑफ इकोनामिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) ने काले धन की निकासी में सहयोग न करने वाले देशों की काली सूची जारी की है और अनुमान व्यक्त किया है कि काले धन की सैरगाह बने देशों में १७०० अरब डॉलर से ११५०० अरब डॉलर मूल्य के दायरे में परिसंपत्तियाँ जमा हैं. यहाँ आप गणित लगा लीजिये कि यह काला धन 'जी-२०' नेताओं द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए प्रस्तावित की जाने वाली राशि के मुकाबले दस गुना से भी अधिक है.

चुनाव प्रचार में भाजपा काला धन वापस लाने का कनकौव्वा उड़ा रही है. जबकि भाजपा अच्छी तरह जानती है कि विदेशों में जमा काला धन यज्ञ-हवन करके वापस नहीं लाया जा सकता है. हाँ, धर्मगुरुओं के आशीर्वाद से धन जमा करने वालों का पता अवश्य लगाया जा सकता है. काला धन विदेश में रखने वाले भी उन्हीं के चेले होते हैं और आशीर्वाद लेकर चुनाव जीतने वाले भी. आडवाणी जी ने अभी कहा भी था कि वह साधु-संतों और धर्मगुरुओं से मार्गदर्शन लेते रहेंगे. कुछ वर्ष पहले धर्मगुरुओं के मार्गदर्शन में 'काले' को 'सफेद' बनाया जा रहा था जिसका स्टिंग ओपरेशन हुआ था, पता नहीं लोग उसे क्यों भूल गए? उसका कोई नामलेवा नहीं! बाबा रामदेव भी चुनाव के समय वह मामला नहीं उठाते जबकि 'राष्ट्र का जिम्मेदार नागरिक' होने के नाते काला धन वाले मुद्दे पर उन्होंने कांग्रेस की कम घेराबंदी नहीं कर रखी है.

स्विस बैंकों का तो हाल यह है कि वहां खातादार का नाम पता होता ही नहीं, एक कोड नंबर होता है. यह कोड नंबर खातादार की धर्मपत्नी और धर्मबच्चों तक को वे नहीं बताते. आपका तलाक हो जाने अथवा वसीयत जैसे कानूनी मामले में भी ये बैंक आपके खाते की गोपनीयता भंग नहीं करते. और नाम खुल जाने के भय से खातादार भी भला क्यों किसी को बताएगा. इतना जरूर होता है कि खातादार की मौत के बाद अगर जमा राशि पर ७ से १० वर्ष के बीच किसी ने दावा नहीं किया तो वह पूरी राशि बैंक की हो जाती है. क्या पता कुछ पूज्य महात्मा अपनी नश्वर किन्तु पार्थिव देह का परित्याग करने से पूर्व अपने बीवी-बच्चों को वह कोड नंबर बता भी जाते होंगे!

स्विट्ज़रलैंड में दुनिया भर का काला धन छिपाने के कारोबार में एक-दो नहीं पूरे ४०० बैंक लगे हुए हैं. इनमें से करीब ४० शीर्ष बैंक बेनामी खाता खोलने की सुविधा देते हैं. यूबीएस और एलटीजी ऐसे ही बाहुबली स्विस बैंक हैं. खाता खोलने के लिए आप एक पत्र भेज दें, बस हो गया काम. बेनामी खाता खुलवाने के लिए सिर्फ एक बार आपको व्यक्तिगत रूप से बैंक में उपस्थित होना पड़ता है. फिर आप चाहें तो खाता ऑनलाइन संचालित करें या फ़ोन पर आदेश देकर. आपके खाते की गोपनीयता कायम रखने के लिए स्विस सरकार ने ऐसे नियम बनाए हैं कि अगर किसी बैंक अधिकारी या कर्मचारी ने राज खोला तो उसे सश्रम कारावास दिया जा सकता है. स्विस बैंकों के लिए यह कोई गुनाह ही नहीं है कि खातादार ने अपने देश में कर चोरी करके पैसा उनके यहाँ जमा किया है. स्विस कानून में आपके लिए कमाई और संपत्ति का ब्यौरा देने की भी कोई बाध्यता नहीं है.

सन् १९३४ के बाद से बैंकिंग गोपनीयता का कानून स्विस सरकार ने दीवानी से बदलकर फौज़दारी कर दिया था. इसके तहत हथियारों की अवैध बिक्री और नशीली दवाओं की तस्करी के जरिए हुई कमाई के मामलों में गोपनीयता के नियम थोड़े शिथिल किये गए थे. लेकिन सवाल यह है कि किस मुद्रा में लिखा होता है कि वह किस ढंग से कमाई गयी है. करोड़ों-अरबों के भारतीय रक्षा सौदों तथा उनमें वसूला गया कमीशन किस रास्ते से कहाँ पहुंचा, कोई इसका माई-बाप आज तक पता चला है क्या? क्वात्रोची का ही कोई क्या उखाड़ पाया?

विदेशों से काला धन वापस लाने की एक सूरत हो सकती है. जिस तरह कुछ वर्ष पहले 'ब्लैक' को 'व्हाइट' करने के लिए केंद्र सरकार ने देश में एमनेस्टी स्कीम चलायी थी उसी तरह काला धन वापस लाने वालों के लिए एमनेस्टी स्कीम चलाये और उनकी पहचान स्विस बैंकों की ही तरह गुप्त रखे. तब संभव है कि कुछ धर्मात्मा भारतीय जीव भारत के भूखों-नंगों पर तरस खाकर अपना धन यहाँ लगा दें. गणित लगाइए कि अगर एक प्रतिशत काला धन भी लौट आया तो वह कितने खरब होगा?

15 टिप्‍पणियां:

  1. paise ka kala hona yaa safed bhartiya janta party ke neta adwani ko umra ke aakhri padaav me yaad aa rahe hain dhanya hain baba ramdev bhi .................jo aajkal swabhimaan raili me vyast hain .....mudda bank ka paisa

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  2. अपना रथ ले जाएंगे

    उसी में लाद/लदवा लाएंगे

    फिर बटवाएंगे सब में

    या .............

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  3. काले धन को भारत में वापिस लाने के मुद्दे से से परेशान हैं या तो कपि(ल) सिब्बल जैसे उछल कूदिये या हवा में दीदे गड़ा रहे सेकूलरिये

    जिस तरह आप बता रहे हैं कि लोग अपनी नश्वर देह का परित्याग करने से पहले बीवी-बच्चों को वह कोड नंबर बता भी जाते हैं, लगता है कि आप एसे देशद्रोही, बेईमानों के संपर्क में जरूर रहते होंगे. अब चाहे एसा करने वाला कोई बाबा हो, कोई देशद्रोही कम्युनिष्ट या वतन फरोश कांग्रेसी, हर एक जूतों के साथ साथ जेल का भी हकदार है.

    आप लिखने से पहले थोड़ा गूगलिया लेते तो आपको पता चल जाता कि कैसे उन लोगों के नामों का पता लगाया जा सकता है जिनके स्विस बैंक में खाते हैं?
    पिछले साल मई में छपी टाइम्स आफ इंडिया की ये खबर पढ़िये
    http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/3057422.cms

    भारतीय खातेदारों के नाम जर्मन सरकार के पास है और उसने भारत सरकार से कहा है कि यदि भारत सरकार चाहे तो जर्मन सरकार इन देशद्रोहियों के नाम भारत सरकार को दे सकती है, उस समय जब देश पर कांग्रेसी यूपीए का शासन था और कम्युष्टिये बाहर बैठे सरकार के समर्थन में तालियां बजा रहे थे. आडवानी ये मुद्दा आज नहीं पिछले साल से ही उठा रहे हैं. लेकिन न कांग्रेस ने नाम मांगे, न बाहर बैठ कर तालियां बजाने वाले कम्युष्टियों ने, क्यों? आप आडवानी आडवानी चिल्लाने के बजाय कांग्रेस और कम्यूनिष्टियों से तो पूछिये?



    इस बारे में ट्रांसपेरेसीं इंटरनेशल की रिपोर्ट कहा गया है, "a stoic silence over the issue and has not approached the German government for this data'' (The Economic Times, 25.5.2008). Some ministers in the UPA Government are reported to have made several trips to Switzerland as the personal leg of their official tours abroad."

    सो "चतुर"वेदी जी, यदि आप मनुष्य हैं तो हैंहैं ठेंठें, फैंफैं छोड़कर कुछ देशहित की बातें कीजिये

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  4. किसी दल ने कोई ऐसा मुद्दा उठाया है जिस का निम्न और निम्नमध्यवर्ग के लोगों से कोई ताल्लुक हो।

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  5. रवि सिंह जी, आपकी तिलमिलाहट समझी जा सकती है. लेकिन आप यह जान लें कि न तो मैंने यूपीए सरकार के लोगों को कोई क्लीन चिट दी है और न ही एनडीए को और न आपकी भाषा में कहे गए देशद्रोही कम्युनिस्टों को. वैसे भी किसी को क्लीन चिट देने वाला मैं कौन होता हूँ? ऐसे फ़तवे तो आप जैसे महान लोग ही दे सकते हैं कि कम्युनिस्ट देशद्रोही हैं और कांग्रेस वतनफरोश. मैंने तो वहां की व्यवस्था की बात की है जिसे जनता से छिपाते हुए आडवाणी जी चुनाव में रन बनाना चाहते हैं.

    आपने जिस वेबसाईट का नाम-पता दिया है उस पर आपने ही क्यों नहीं कुछ पता कर लिया? आडवाणी जी से ही कह दिया होता कि वह जर्मन सरकार को पत्र लिखने के लिए कोई रथ यात्रा निकालते. जिस मुद्दे के लिए रथ यात्रा निकाल कर देश भर में उन्होंने दंगे करवाए वह तो उनके घोषणा-पत्र तक में नहीं है. आपके अनुसार वह साल भर से प्रयास कर रहे थे लेकिन किसी को कानोकान ख़बर नहीं हुई. अब चुनाव के समय काले धन का ढोल इतनी जोर से कैसे बजने लगा?

    पता करके मुझे भी बताइएगा. जिनके नाम पता चलेंगे तो उन्हें हम भी जूते जमायेंगे, फिर चाहे वह काले धन वाला भाजपाई हों, कांग्रेसी हों या 'देशद्रोही' कम्युनिस्ट हों.

    ख़ैर छोड़िये, दिनेशराय जी ने बात पते की की है.

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  6. चुतर्वेदी जी, मैंने कब कहा कि आप क्लीन चिट दे रहे हैं आपकी और हमारी क्लीन चिट देने की कोई औकात नहीं है, चिट देने की एक्टिंग तो सिर्फ देशद्रोही कम्युनिष्ट और विदेसी पैसे पर पल रहे सेकूलरिया पत्रकार ही करते हैं

    यदि कम्युनिष्टों को देशद्रोही कहने से जी लरजता है तो थाम लीजिये, जो पार्टी युद्द के समय विदेशी हमलावर का साथ दे, या जो नेताजी सुभाष को अपशब्द निकाले उसे देशद्रोही नही तो क्या कहा जाये?

    आप कहते हैं कि आडवानी के साल भर के प्रयासों की आपको कोई खबर नहीं हुई अगर आपको कानों कान खबर नहीं हुई तो गलती आपकी है, थोड़ा पढ़ा लिखा कीजिये, मैंने जिस खबर का लिंक दिया है वह टाइम्स आफ इंडिया में पिछले साल छपी हुई खबर का है. क्या कांग्रेसी वित्तमंत्री या मनमोहन ने उनके पत्र के जबाब में हीला हवाला टालमटोल नहीं की?

    जर्मन सरकार मई 2008 में नाम देने की पेशकश दो सरकारों के बीच की है, न तो मई 2008 के बाद आडवानी कोई मंत्री संत्री है न मैं जो जर्मन सरकार से नाम पता करू और वो बता दे. जर्मन सरकार की पेशकश को पढ़ लीजिये फिर आपकी बात समझ में आ जायेगी,

    क्या आडवानी इस समय जो बात जोर शोर से कह रहे हैं वो क्या किसी रथयात्रा से कम है?

    चिन्ता मत कीजिये, आपको और हमको जूते लगाने के बहुत जल्दी मौके मिलेंगे. स्विस बैंक में पैसे रखने वाले चोरों के नाम जरूर पता चलेंगे

    वैसे अब जनता ने अपने हाथों में जूते तो उठा लिये हैं, शायद इसकी खबर हो आपको

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  7. ho gaya? are aap logon ke bahas me hee maja aa raha tha. kya aap log bhee. bahut jaldee thande ho jate hain. mausam garmaye rakhiye.

    maal mare neta log
    aur sar phute aapka..

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  8. किससे बात करें कौतुक जी? आपका कौतूहल अभी शांत हुआ जाता है, ज़रा रवि जी का प्रोफ़ाइल देखिए अगर नज़र आ जाए तो. जैसे अपना ही प्रोफाइल ले लीजिए.

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  9. स्विस बैंकों में जमा काला धन भारत का है. उसमे सभी दलों के नेता लिप्त होंगे, किसी के थोड़े कम, किसी के थोड़े ज्यादा. अरे, अडवाणी जी ने मामला उठाया तो बी बात तो अच्छी ही है न! हो सकता है, वो चुनाव के नजदीक इस बात पर जोर दे रहे है, तो मंशा कुछ अलग हो सकती है, लेकिन निष्पक्ष रूप से आकियें तो मुद्दा तो सही है न! हम लोग टैक्स देते हैं, हमारा पैसे उडाया गया, फिर भी हम इस नेतायों का पक्ष या विपक्ष कर रहें है.

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  10. ram mandir ke liye janata se jutaaye chande ka hisaab to diya nahin, videsh se paisa kya khak layenge. milega bhi to tahalka kand jaisa apni tijori men bhar lenge.
    govind acharya

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  11. एक अच्छा आलेख !! आपने बिल्कुल सही बात कही है !! ये रथयात्रा और स्वाभिमान रैली की जगह मुल कदम उठाने चाहिये !!

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  12. विजय भाई, आपकी यह पोस्‍ट मुझे बेहद मौजू लगी। क्‍या मैं इस पोस्‍ट को आपके क्रेडिट के साथ दैनिक जागरण में छाप सकता हूं? कृपया, अवगत कराएं।
    मेरा मोबाइल नंबर है- 9910140349
    अवैद्यनाथ दुबे, दैनिक जागरण, दिल्‍ली

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