अक्सर यह जुमला उछालकर लोग सिखों का मजाक बनाया करते हैं. लेकिन ज़रा सोचिये कि इससे उनके दिलों पर क्या गुज़रती होगी. अपनी अज्ञानता के चलते दूसरों की कुरबानियों का मजाक उड़ाना कहाँ तक जायज़ है? यह तो सिख कौम की दरियादिली है जो ख़ुद पर बनाए गए लतीफों पर भी ठहाके लगा कर बात आयी गयी कर देती है. लेकिन पानी जब सर से ऊपर गुज़र जाए तो क्या हो?
दरअसल इस जुमले के पीछे सिख कौम के बलिदान का इतिहास छिपा है. इसे लतीफे में बदलने वालों की अक्ल पर तरस खाना चाहिए. मैं विशेषज्ञ तो नहीं, लेकिन मुझे मेरे एक सिख मित्र गुरविंदर सिंह ने इस बारे में जो कुछ बताया था, वह संक्षेप में आपके साथ बांटना चाहता हूँ--
'मुगलिया सल्तनत के दौरान सत्रहवीं शताब्दी में हिन्दूजन के हालात बद से बदतर होते चले जा रहे थे. हिन्दू महिलाओं के साथ मुग़लों का रवैया निजी संपत्ति की तरह था. जनता को इस्लाम कबूलने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी जाती थीं, यहाँ तक कि उनकी हत्या तक कर दी जाती थी. कश्मीरी पंडितों के बचाव में खड़े होनेवाले सिखों के नौवें धर्मगुरु श्री तेगबहादुर जी ने मुग़ल बादशाह को चुनौती दी कि अगर वह किसी तरह उनसे इस्लाम कबुलवाने में कामयाब हो गया तो बाकी लोग भी कबूल कर लेंगे. लेकिन अगर ऐसा न हो सका तो उसे अपनी ये गतिविधियाँ बंद करनी होंगी. बादशाह को यह बड़ा आसान लगा. लेकिन जब अमल में लाने की बारी आयी तो उसके होश फाख्ता हो गए.
श्री तेगबहादुर जी को उनके ४ अनुयायियों समेत भीषण यातनाएं दी गयीं लेकिन उन्होंने इस्लाम किसी तरह न कबूला. आखिरकार उनको मार डाला गया.
उस समय की घटनाओं को देखते हुए श्री तेगबहादुर जी के बेटे और सिखों के दसवें गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की. उन्हीं दिनों, १७३९ में नादिरशाह ने हिन्दुस्तान और दिल्ली लूटी. वह अपने साथ अकूत धन और २२०० से ज्यादा हिन्दू स्त्रियाँ लूटकर लिए जा रहा था. यह ख़बर आग की तरह फैली और उस समय के सिख सेना कमांडर जस्सा सिंह के पास भी पहुँची. जस्सा सिंह ने उसी आधी रात को नादिर शाह के काफिले पर धावा बोलकर तमाम हिन्दू स्त्रियों को रिहा करा लिया और उन्हें उनके घर भेज दिया.
तब से यह सिलसिला शुरू हो गया. जब भी कोई अब्दाली या ईरानी हिन्दुस्तान का धन और स्त्रियाँ लूटकर लिये जा रहा होता, सिख सेना आधी रात को जैसे ही १२ बजते; घात लगाकर हमला कर देती तथा स्त्रियों को आजाद करा लेती. अन्यथा, ये स्त्रियाँ अब्दाल के बाज़ार में नीलाम कर दी जाती थीं.
इसके बाद जब भी ऐसा संकट आता; आसपास के इलाकों के लोग सिख सेना से सम्पर्क करते और सिख सेना रात को १२ बजे के आसपास लुटेरों पर धावा बोल देती थी. इस समय तक सिखों की बढ़ती ताकत से जलनेवाले तथा 'कुछ चालाक टाइप' लोगों ने यह फैलाना शुरू किया कि रात को १२ बजते ही सिखों का दिमाग सनक जाता है.
उस समय का यह ऐतिहासिक सच आज कुछ लोगों के लिए मनोरंजन का सबब बना हुआ है. इसीलिए ये किसी भी सिख को देखकर जुमला उछालेंगे- 'सरदार जी बारह बज गए", और हँसेंगे.
अपने मित्र गुरविंदर सिंह के मुंह से यह हकीकत सुनने के बाद तो अब मैं सपने में नहीं सोच सकता कि 'सरदार जी बारह बज गए' कहकर हंसा भी जा सकता है.
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यह मजाक अथवा अन्याय हरमन्दर साहब पर भारतीय सैन्य आक्रमण के पहले तक ज्यादा प्रचलित था। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद , १२ बजे वाले चुटकले बन्द से हो गये । क्या मैं सही हूँ ?
जवाब देंहटाएंमेरी जानकारी में भी यही बात थी । जिन्होंने हमारी रक्षा की उन्हीं का हमने मजाक बना दिया । यदि सिख ना होते तो पंजाब में शायद हिन्दु भी न होते । मेरे मन में तो उनके लिये केवल आदर हैं ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
एक काम की जानकारी देने के लिए हम आपके आभारी हैं....
जवाब देंहटाएंअच्छा लिख रहे हैं....
लगे रहें....।
talchhat to feature lekhan ko nayee oonchaiyan de hee raha hai, anya cheezen bhee achchhee hain. 12 baj gaye kee yah prishthabhoomi mujhe naheen maaloom thee. dhanyavaad.
जवाब देंहटाएंye padkar mere man me sikho ke prati aader aur bhi badh gaya
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