इब्ने मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुःख की दवा करे कोई
यह इब्ने मरियम ईसा मसीह थे. २५ दिसम्बर वह दिन है जिसे हम दुनिया का सबसे बड़ा जन्मदिवस कह सकते हैं. इसी दिन उनका जन्म हुआ था. विश्वास किया जाता है कि ईसा मसीह के पास संसार के हर दुःख की दवा थी. उनके उपदेश सुनकर लोग भलाई का रास्ता अपना लेते थे. उनकी वाणी में ऐसा जादू था कि हजारों लोग मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते थे और उनके पीछे-पीछे चल पड़ते थे. लेकिन कभी आपने विचार किया है कि ईसा मसीह किस भाषा में बात करते थे?
विद्वानों के अनुसार ईसा मसीह का असली नाम जीजस था. लेकिन हम उन्हें जीजस क्राइस्ट के नाम से अधिक जानते हैं. जीजस शब्द ग्रीक के 'लेसअस' से आया है और क्राइस्ट ग्रीक के ही 'क्रिसटोज' शब्द से निकला. क्रिसटोज का ग्रीक में अर्थ होता है 'अभ्यंजित करना'. मसीहा हिब्रू का शब्द है और यह क्राइस्ट का अर्थ देता है.
ईसा के जन्म और जीवनचरित के बारे में विस्तृत जानकारी हमें गोस्पेल ऑफ़ मैथ्यू तथा गोस्पेल ऑफ़ ल्यूक या लूका में मिलता है. इसे प्रामाणिक माना जाता है. मैथ्यू और ल्यूक के मुताबिक ईसा मसीह का जन्म बेथेलहम (जूडिया) में हुआ था. ल्यूक कहता है कि अक्षतयौवना मैरी के सपने में देवदूत गैब्रियल ने कहा था कि ईश्वर ने उसे अपने बेटे को धारण करने के लिए चुना है. यही ल्यूक बताता है कि रोमन सम्राट सीज़र ऑगस्टास ने मैरी तथा जोजफ को नाज़रेथ के घर से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया था. क्विरिनियेस की जनगणना के लिए दोनों को अपने पुरखों के मकान में रहने जाना पड़ा था, जो डेविड का मकान था.
ईसा मसीह का बचपन अधिकांशतः नाज़रेथ तथा गैलिली में बीता. इसमें वह समय छोड़ दिया जाए जो उसके माता-पिता को शिशु जीजस के साथ मिस्र में बिताना पड़ा था. दरअसल राजा हेरोड शिशुओं का सामूहिक नरसंहार करवा रहा था. इससे बचने के लिए मैरी और जोजफ अपने शिशु को लेकर मिस्र भाग गए थे और राजा हेरोड की मौत होने तक वहीं रहे.
जीजस आरमेइक भाषा का इस्तेमाल करते थे. हिब्रू और ग्रीक भाषाएं भी जीजस की थीं लेकिन रोजमर्रा की बातचीत आरमेइक में ही करते थे. आर्मेनिक प्राचीन सेमेटिक कुल की भाषा है जिसमें हिब्रू तथा अरबी शामिल हैं. नाम एक जैसे लग सकते हैं लेकिन अरबी और आरमेइक एक जैसी कतई नहीं हैं. आरमेइक में २२ अक्षर होते हैं और यह दायें से बाएँ लिखी जाती है. यह उन लोगों की भाषा थी जो उत्तर-पश्चिमी मेसोपोटामिया/सीरिया के निवासी थे.
यह दज़ला-फ़रात के किनारे की आबादी और बेबीलोन के चाल्डीयनों की भी भाषा थी और जीजस के सैकड़ों साल पहले से बोली जा रही थी. जीजस के दिनों में तो यह मध्य-पूर्व की 'लिंगुआ फ्रैन्का' थी. आगे के वर्षों में जिस तरह लैटिन- इतालवी, फ्रांसीसी, स्पेनी, रोमानियाई, पुर्तगाली तथा ऐत्टिक ग्रीक भाषा आधुनिक ग्रीक में तब्दील हो गयी, ठीक इसी तरह प्राचीन अर्मेनिक आधुनिक आर्मेनिक के डायलेक्टों में बदल गयी. ये डायलेक्ट हैं- चाल्डियाई, असीरियाई, सीरियक आदि.
आज की आरमेइक बोलनेवाले संख्या में थोड़े तथा सीरिया, तुर्की, इजरायल, रूस, जोर्जिया, ईरान और इराक़ में फैले हुए हैं. तथ्य यह है कि इनकी संख्या दिनोंदिन तेजी से घटती जा रही है.
वह दिन दूर नहीं जब हजरत ईसा मसीह की भाषा बोलने वालों का नामोनिशान ढूँढे नहीं मिलेगा. मैं यह किसी धार्मिक भावना या विश्वास के वशीभूत होकर नहीं लिख रहा हूँ. बस, करुणा और 'ईश्वर के राज्य' का संदेश दुनिया को देनेवाली भाषा के बारे में सोचकर रोमांच हो आता है. कभी-कभी सोचता हूँ कि श्रीकृष्ण किस अंदाज़ में अपनी बातें कहते रहे होंगे? क्या सिर्फ़ ब्रज भाषा में ही बोलते थे या और भी कोई भाषा थी उनकी? आप क्या सोचते हैं?
लेख बहुत अच्छा और ज्ञान को बढ़ाने वाला है. संदीप बी देशमुख
जवाब देंहटाएंजब आर्मेनिया नाम एक देश ही है और वहां सभी लोग अर्मेनियन बोलते है, तो चिन्ता किस बात की है?
जवाब देंहटाएंजब आर्मेनिया नाम एक देश ही है और वहां सभी लोग अर्मेनियन बोलते है, तो चिन्ता किस बात की है?
जवाब देंहटाएंmukhay baat yah nhi ki yeshu masih kis bhasha main bate karte thy mukhay baat yh hain ki yeshu masih hamse kya bate karte hain jo hame is sansaar (jagat )se alag karti hgain
जवाब देंहटाएंविजय भाई,
जवाब देंहटाएंमुझे यहाँ दो गड़बड़ियाँ नज़र आ रही हैं । आपने लिखा है कि विद्वानों के अनुसार ईसा मसीह का असली नाम जीजस ऑफ़ नाज़रेथ था । साधारण सी बात है कि "जीजस ऑफ़ नाज़रेथ" किसी का असली नाम कैसे हो सकता है ? यह उपमा है और समाज द्वारा दिया गया नाम है ।
आप जिसे "आर्मेनिक" कह रहे हैं उसका बहुप्रचलित रूप "आर्मेनियन" है जो भारोपीय भाषा परिवार या इंडो-ईरानी भाषा परिवार की प्रमुख भाषा रही है । यह मुख्यतः कुर्द क्षेत्रों और आर्मीनिया में बोली जाती है । आपका आशय शायद प्राचीन इराक और सीरिया में बोली जाने वाली "आरमेइक" ज़बान से है जो सेमिटिक भाषा परिवार की है । दोनो में फ़र्क है । आज की इराकी अरबी भी इसी आरमेइक से निकली है ।
अजित भाई, आजकल ब्लॉग पर सक्रियता कम है, उस पर कोढ़ में खाज यह कि हॉटमेल एकाउंट ब्लॉक/हैक हो गया है. यह तो आपके कमेन्ट की टेलीपैथी कहिये कि ऑफिस से निकलते निकलते लगभग पंद्रह दिनों बाद एक नज़र इधर मार ली वरना आपके शिकवे का भान तक नहीं होता-:))
जवाब देंहटाएंआप सही कह रहे हैं, जीजस ऑफ़ नाज़रेथ की जगह सिर्फ 'जीजस' लिखा जाना चाहिए था. मेरा आशय प्राचीन सीरिया में बोली जाने वाली सेमेटिक कुल की ज़बान आरमेइक से ही था. अभी ठीक किये लेता हूँ. शुक्रिया!
हज़रत ईसा अलहिस्सलाम फिर आईगे इस दुनिया में दाज्जअल को ख़तम करने Allha के हुकुम्से
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