साथियो,
यह कविता कई जगह छ्प चुकी है। सम्भव है आपमें से कुछ का ध्यान इस पर पहले भी गया हो. लेकिन इस मंच पर नए सुधी पाठकों के सामने इसे प्रस्तुत करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ. यह मेरी अपनी कुछ प्रिय कविताओं में से एक है. आपको कैसी लगी, बताना न भूलियेगा. मुलाहिजा फरमाइये-
मेरी आँखें हैं माँ जैसी
हाथ पिता जैसे
चेहरा-मोहरा मिलता होगा जरूर कुटुंब के किसी आदमी से।
हो सकता है मिलता हो दुनिया के पहले आदमी से
मेरे उठने-बैठने का ढंग
बोलने-बतियाने में हो उन्हीं में से किसी एक का रंग
बहुत सम्भव है मैं होऊँ उनका अंश
जिन्होंने देखे हों दुनिया को सुंदर बनाने के सपने
क्या पता गुफाओं से पहले-पहल निकलने वाले रहे हों मेरे अपने
या फिर पुरखे रहे हों जगद्गुरू शिल्पी
गढ़ गए हों दुनिया भर के मंदिरों में मूर्तियाँ
उकेर गए हों भित्ति-चित्र
कौन जाने कोई पुरखा मुझ तक पहुंचा रहा हो ऋचाएं
और धुन रहा हो सिर
निश्चित ही मैं सुरक्षित बीज हूँ
सदियों से दबा धरती में
सुनता आया हूँ सिर पर गड़गडाते हल
और लड़ाकू विमानों का गर्जन
यह समय है मेरे उगने का
मैं उगूंगा और दुनिया को धरती के किस्सों से भर दूंगा
मैं उनका वंशज हूँ जिन्होनें चराई भेड़ें
और लहलहा दिए मैदान
सम्भव है कि मैं हमलावरों का कोई होऊँ
कोई धागा जुड़ता दिख सकता है आक्रांताओं से
पर मैं हाथ तक नहीं लगाऊंगा चीजों को नष्ट करने के लिए
भस्म करने की निगाह से देखूंगा नहीं कुछ भी
मेरी आँखें हैं मां जैसी
हाथ पिता जैसे।
-- विजयशंकर चतुर्वेदी.
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अफ़लातून कविता है ! सातत्य रखें चिट्ठेकारी में ।
जवाब देंहटाएंfilhaal badhai
जवाब देंहटाएंस्वागत भाई रविशंकर जी ।
जवाब देंहटाएंआरंभ
जूनियर कांउसिल
हिन्दी चिट्ठजगत में स्वागत है।
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी लगी । आभासी संसार, चिट्ठों के संसार में आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
अफलातून को मेरा धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंयही बात चवन्नीजी के लिए
संजीव तिवारी, उन्मुक्त तथा घुघूती बासूती को भी अनेकानेक धन्यवाद!
विजय भाई कहां गायब थे आप ।
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ कि आजाद लब लेकर आए ।
अब यहीं मुलाकात होती रहेगी ।
शुभकामनाएं ।
sambandheejan to shaandaar kavita hai hee, talchhat bhee laajavaab hai. sabrang ka niyamit stambh 'log haashiye par'yaad aa gaya. talchhat naam bhee bahut achchha hai.
जवाब देंहटाएंaur aapki dhamkee ke to kya kahne ' main kisee bhee vishay par kuchh bhee likh maar saktaa hoon!'svaagat hai bandhu. ham aapki kalam se 'kuchh bhee' padhane ke liye poori tarah taiyaar hain.
kul milaa kar 'azad lub' naye roop me aur behtar hua hai. abhinandan hee nahee aabhaar bhee - khaas kar talchhat ke liye.