मंगलवार, 15 जनवरी 2008

अमेरिकी राष्ट्रपति ने बेची थी अपनी ही बेटी!

बुर्जुआ समाज और संस्कृति-३

(...गतांक से आगे)

मनु की दंडविधि हिंसक है। सामाजिक विधान निष्ठुर और वैषम्यमूलक हैं. यहाँ तक कि मनु स्मृति के कई विधान (जैसे अपराधी का अंग-भंग या बहु-विवाह) आदि दंडनीय हैं. मनु और याज्ञवल्क्य क्या हमेशा ज्यादा हृदयहीन और मूर्ख थे? नहीं. आधुनिक संविधान निर्माताओं की योग्यता मनु के पासंग भी नहीं है. विदेशी विद्वानों ने मनु की उच्छ्वसित प्रशंसा की है. और यह मनु का प्राप्य भी है.

लेकिन मनु के विधान हमारे युगानुकूल नहीं हैं। एकदम नहीं हैं, मगर तत्कालीन युग में उसे कठोर या अमानवीय नहीं समझा गया था. प्लेटो या अरस्तू जैसे मनीषियों के मन में भी दास-प्रथा का नकारात्मक पक्ष नहीं आया था. अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति जोर्ज वाशिंगटन (१७८९-१७९६) ने अपनी वसीयत में १६० क्रीत दास छोड़े थे. (मार्टिन लूथर किंग/ केयोस ऑर कम्यूनिटी, होडार एंड स्टाफसन, लंदन, १९६८, पेज ७६).

बेंजामिन फ्रैकलिन और स्वाधीनता के घोषणापत्र के रचयिता टॉमस जेफ़रसन (१८००-१८०४) अपनी यौनेच्छा की पूर्ति के लिए छांट-छांट कर नीग्रो युवतियां खरीदते थे। फ्रैकलिन का तो दास उत्पादन का व्यापार ही था. (वह) भेड़-बकरियों की तरह नीग्रो दास-दासियों को इसलिए पालते थे कि उनकी संतानों को दास बनाकर बाज़ार में बेचा जा सके.

प्रेसीडेंट जेफ़रसन नीग्रो दासियों से उत्पन्न अपनी कन्याओं को रंडीखानों में बेचा करते थे। उनकी मृत्यु के बाद २ पुत्रियों को न्यू ओर्लिया के क्रीत दासों के बाज़ार में यौन-व्यापारियों को बेचा गया. उनकी ये दोनों ही पुत्रियाँ सुंदर, गोरी, शिक्षित और सुसंस्कृत तथा नीली आंखों वाली थीं, इसलिए उनके दाम १५०० डॉलर प्रति कन्या मिले. प्रेसीडेंट ताइलर ने भी ठीक इसी तरह अपनी कन्या को पतिता वृत्ति में झोंक दिया था. (जे. ए. रोजर्स/ सेक्स एंड रेस, द्वितीय खंड/ हैरी बेंजामिन तथा आ. ई. एल. मास्टर्स रचित प्रोस्टीच्यूशन एंड मोरालिटी के ७३वें पेज पर उद्धृत, सुवेनियर प्रेस, लंदन, १९६४).

वाशिंगटन, फ्रैंकलिन, जेफ़रसन और ताइलर आधुनिक भद्र लोगों से निकृष्ट नहीं थे। उनके कार्य उस युग की शिक्षा और संस्कृति के अनुकूल थे.

अभी कल की ही बात है, इंग्लैड के फौज़दारी विधान में केले या मूली जैसी दो सौ तुच्छ वस्तुओं की चोरी के लिए फांसी का फैसला दिया जाता था. अग्निपरिक्षा द्वारा सत्य-निर्णय का नियम था. जज साहब, वादी-प्रतिवादी, दोनों से ही खुलेआम घूस लेते थे. नौकरी के लिए भी यही प्रचलित था और कई को इसमें आपत्तिजनक कुछ नहीं लगता था. अंग्रेजों को दास-प्रथा इतनी लुभावनी लगी कि संसद में बिल लाकर भी इसे बंद करना सम्भव नहीं हो पाया। अंततः मालिकों को २०००००० पाउण्ड का जुर्माना अदा करने पर उनकी मुक्ति सम्भव हो पायी.

सामाजिक भावाकाश के प्रभाव से कोई सा भी काम जनता को स्वाभाविक प्रतीत होता है। हर क्रिया किसी समय अच्छी मानी गयी है और सारे महापाप काल की गति में सत्कर्म बनते गए. किसी समय युद्ध द्वारा ही न्याय-प्रतिष्ठा का नियम था. पिछड़े समाज के लोगों को क़ानून के फैसले से सख्त ऐतराज़ था. वे बाहुबल के पक्ष में थे.

कभी अनियमित यौन संबंधों के बदले विवाह जैसे विचार भी मनुष्य के व्यक्तिगत अधिकार में हस्तक्षेप माने जाते थे। मास्क, एस्किमो, केन्या की कई उपजातियों आदि अनेक समूहों में औरत उधार लेन-देन का चलन था. एस्किमो अपने अतिथि का सत्कार अपनी पत्नी को उसके साथ सोने की अनुमति देकर करते थे, लेकिन अगर वह फुसला कर भगा लेता तो उसकी हत्या तय थी. ज्यादातर नवजात शिशुओं को मार डालना कई जातियों का सामान्य नियम था.

'पहल' से साभार
(अगली किस्त में ज़ारी)

6 टिप्‍पणियां:

  1. वास्तव मे यह जानकारी ने मुझे चकित कर दिया है कि दुनिया मे एसा भी होता है जहाँ खून के रिस्तो का का भी कोई महत्व नही है | रोचक जानकरी देने के लिए धन्यवाद

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  2. बंधु - पढ़ रहे हैं इसमें नुक्ता चीनी पूरा पढ़ के ही होगी -rgds- manish

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  3. पढ़ रहे हैं , लिखते रहिये ।
    घुघूती बासूती

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  4. शक्तिशाली या इमानदार ब्यक्ति का सेक्स से गहरा सम्बन्ध होता है

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  5. शक्तिशाली या इमानदार ब्यक्ति का सेक्स से गहरा सम्बन्ध होता है

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  6. शक्तिशाली या इमानदार ब्यक्ति का सेक्स से गहरा सम्बन्ध होता है

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