शनिवार, 26 अगस्त 2023

मेरी नई ग़ज़ल

 प्यारे दोस्तो,

बुजुर्ग कह गए हैं कि हमेशा ग़ुस्से और आक्रोश में भरे रहना सेहत के लिए ठीक नहीं होता। इसीलिए आज पेश कर रहा हूं अपनी एक रोमांटिक ग़ज़ल- आप भी इसे गुनगुनाते हुए थोड़ा-सा रोमानी हो जाएँ! ❤😄


तुम्हारी नज़र का निशाना कहाँ है

नया ज़ख़्म फिर से लगाना कहाँ है


अभी ख़्वाब सोए हैं पलकों की ज़द में

अभी आंसुओं का ठिकाना कहाँ है


ये पहला सबक है ग़म-ए-आशिक़ी का

के कब रूठना है मनाना कहाँ है


खिला चाँद छत पर तो अक्सर वो रोए

हँसी और ख़ुशी का ज़माना कहाँ है


कभी गुल ने बुलबुल से क्या इल्तिजा की

हमें कब किसी को बताना कहाँ है


मोहब्बत के दीदार को तुम न तरसो

फ़क़त ये बता दो कि आना कहाँ है


-विजयशंकर चतुर्वेदी


(हुनरमंद लोग चाहें तो इसे अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करके मुझे लौटा भी सकते हैं। मैं हरगिज़ बुरा नहीं मानूँगा। 😂😂)

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