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गुरुवार, 26 जून 2008

इस बार पढ़िये सिब्बन बैजी की चंद गज़लें

शायर सिब्बन बैजी का मूल नाम सीबी सिंह है, मुझे इसका इल्म बहुत बाद में हुआ. करीब १८ साल पहले जब मैं मुम्बई में उनसे मिला था तो उन्हें तमाम दोस्त सिब्बन नाम से पुकारते थे. वह फक्कड़ तबीयत के, छपने-छपाने के मामले में बेपरवाह शायर रहे हैं. तभी तो उनका एकमात्र ग़ज़ल संग्रह २००७ में आ पाया है वह भी नौकरी से रिटायर होते-होते.



सिब्बन मूलतः अलीगढ़ जनपद स्थित विजयगढ़ नामक क़स्बे के हैं. जिंदगी भर पोस्ट ऑफिस में चाकरी की लेकिन शायरी का चस्का ऐसा कि मनीआर्डर फॉर्म पर भी शेर लिख लेते थे. सिब्बन की और मेरी उम्र का फासला बहुत है लेकिन पहले दिन से ही हम दोस्तों की तरह रहते आए हैं, न मैंने महसूस किया कि वह उम्रदराज़ हैं और न उन्होंने यह महसूस होने दिया कि मैं उनसे २५ वर्ष छोटा हूँ. यही सरलता उनकी शायरी की भी खासियत है. पछाहीं लोक संस्कृति की छौंक और तुर्शी उनके अश'आर में सर्वत्र मिलेगी. पेश हैं उनके संग्रह 'आग उगलने की जिद में' से चंद गज़लें-

कैसा है यह शहर कि हर पल गज़र सुनाई देता है
ढलती हुई रात का तन दोपहर दिखाई देता है.

बाहर से हर शख्स यहाँ का हरा-भरा-सा है लेकिन
भीतर जले हुए जंगल का शजर दिखाई देता है.

दूर तलक बस्ती है लेकिन कहीं घरों का नाम नहीं
घर रहते हर शख्स यहाँ दर-ब-दर दिखाई देता है.

किस्सों में खो गयीं नेकियाँ या दरिया में डूब गयीं
जित देखो उस ओर बदी का असर दिखाई देता है.

चलते रहे सहर से शब तक आख़िर वहीं लौट आए
जीवन जाने क्यों अंधों का सफर दिखाई देता है.

मेरी मानो तो 'सिब्बन जी' इस नगरी को छोड़ चलो
चंद सयानों की मुट्ठी में शहर दिखाई देता है.

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रख अपनी मुख्तारी बाबा
अपन भले बेगारी बाबा.

हम अपने बंजर खेतों की
हैं सब मालगुज़ारी बाबा.

रस्ते लहूलुहान कर गयी
राजा की असवारी बाबा.

जब देखो हंसते रहते हो
ऐसी क्या लाचारी बाबा.

आख़िर कब तक ख़ैर मनाती
'सिब्बन' की महतारी बाबा.


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इसका सर उसकी दस्तार
सबसे बढ़िया कारोबार.

दिन में लोग लगें दरगाह
रातों में मीना बाज़ार.

हर इक लब पे लिखा मिला
नानक दुखिया सब संसार.

है इन दिनों वही बीमार
जिसके आँगन पका अनार.

कलम कटारी मीठे बोल
सबके अलग-अलग औज़ार.

हर मजहब है 'सिब्बन जी'
धोती के नीचे सलवार.

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रास्तों से जिस रोज़ सफ़र डर जायेगा
दरिया हो या बँजारा, मर जायेगा

दो की रंजिश में ये बस्ती उजड़ी है
पर इल्ज़ाम तीसरे के सर जायेगा

कितनों को आबाद कर गया देखेंगे
जिस दिन ये तूफ़ान लौट कर जायेगा.

ये तो ज़ख्म दोस्ती का है सच मानो
अगला धोखा आने तक भर जायेगा.

मालूम है अंजाम, भटक ले फिर भी
'सिब्बन' साला भोर भये घर जायेगा.


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झूठी आस बंधाने वाले दिल को और दुखइयो न
माज़ी की मुस्कान लबों को हरगिज याद दिलइयो न.

दुनिया इक रंगीन गुफा है ऐयारी से रौशन है
मेरी सादगी के अफसाने गली-गली में गइयो न.

रमता जोगी बहता पानी इनका कहाँ ठिकाना है
कोरे आँचल को नाहक में गीला रोग लगईयो न.

हम हैं बादल बेरुत वाले बरसे बरसे, न बरसे
मौसम के जादू के नखरे मेरी जान उठइयो न.

रुसवाई के सौ-सौ पत्थर क़दम-क़दम पर बरसेंगे
दिल के टूटे हुए आईने दुनिया को दिखलइयो न.

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खाली बोतल, टूटी चूड़ी, कपड़े फटे-पुराने से
हमने सुना है हुए बरामद मन्दिर के तहखाने से.

बाहर शोर कीर्तन का और भीतर चीख़ कुमारी की
ठाकुरजी की खुली न खिड़की महतो के चिल्लाने से.

सारा दोष बिजूकों का है फसलों को भरमाने में
नाहक ही बदनाम हो गया मौसम रंग जमाने से.

शोहदों से तो ख़ैर बच गयी इज्जत एक कुंआरी की
लगता है मुश्किल बच पाना पंच-कचहरी-थाने से.

शायद कोई जादूगरनी रहती होगी शहरों में
तभी लोग डरते रहते हैं गाँव लौटकर आने से.

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((मेरा मानना है कि जब तक किसी कवि या शायर की चार-छः कवितायें-गज़लें एक साथ पढ़ने को न मिलें तब तक उसके मिज़ाज को समझ पाना ज़रा कठिन होता है. उम्मीद है उपर्युक्त ग़ज़लों से गुजरने के बाद सिब्बनजी के बारे में आप कोई राय बना पायेंगे. आपकी राय यकीनन उन तक पहुंचा दी जायेगी.
सिब्बन बैजी के घर का पता है- बी/३०९, अरुणोदय अपार्टमेंट, गोड़देव नाका, भायंदर (पूर्व), ज़िला-ठाणे (महाराष्ट्र), पिन- ४०११०५)).

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