दोस्तो,
देर हुई आने में. करिए क्षमा!
एक लीटर खून
सुनते आए हैं शरीर में होता है कई लीटर खून
कहते हैं काले के शरीर में होता है गोरे से एक लीटर ज्यादा खून
यह एक लीटर बेसी खून ज्यादा उबाल मारता है
और निर्णायक क्षणों में भारी पड़ जाता है
गोरे लोग शायद इसीलिए बहाना चाहते थे
मार्टिन लूथर किंग जूनियर और उसके जैसे देह के काले फरिश्तों का खून.
...अब ये एक लीटर खून बहाने का मामला था
या खून से खून का जोश ख़त्म करने का...
हिसाब-किताब बराबर करने का तो यहाँ कोई समीकरण भी नहीं बनता
क्योंकि गोरे की नज़र में खून तो काला था ही;
काले व्यक्ति की आत्मा भी काली थी
सच्चाई यह है कि सभ्यता ने इंतजार किया
और तय फ़रमाया कि लंबे समय तक बहाते रहना है काले व्यक्ति का खून
हमारी पीढ़ियों को भी लगता रहा है कि उनकी रगों में
सदियों से बनता आया है कई-कई लीटर अधिक खून
और बहाया जाता रहा है सड़कों पर इस कदर
कि युद्धों में बहे खून को पसीना आ जाए!
लेकिन हमारे खून का हिसाब-किताब दर्ज़ नहीं है किसी इतिहास में
इधर चुन-चुन कर बधिया किया जा रहा है देश के चंद बाशिंदों को
कि वे ठंडा करें अपने खून का जोश
या तैयार रहें धरती पर रहने का इरादा छोड़ने के लिए
वरना बिखरा दिया जायेगा चाँद का खून उनके आँगन में
क्या हुआ जो उनके शरीर में नहीं है एक बूँद भी ज्यादा खून!
-विजयशंकर चतुर्वेदी
गुरुवार, 6 नवंबर 2008
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