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शुक्रवार, 2 मई 2008

ब्लॉग लिखने की अनुमानित लागत उर्फ़ मेरा दुखड़ा!

This is a humourous article. भाई साहब, और बहनजियो! ब्लॉग blog लिखना अपन के लिए बवाल-ए-जान बन गया है। बल्कि सच कहूं तो बवाल-ए-जेब बन गया है. ब्लॉग लिखने की अनुमानित लागत (estimated cost) बढ़ती ही जा रही है. बीवी wife के डर से रोज़ प्लान बनाता हूँ कि आज जल्दी सो जाऊंगा लेकिन दीवानगी देखिये कि बीवी को गच्चा देकर बिस्तर से तीन बजे रात को निकल पड़ता हूँ और बैठ जाता हूँ कम्यूटर computer पर.


दाढी बढ़ गयी है। ब्लॉग के चक्कर में नहाया कई दिनों से नहीं है. फोटो photo इस भय से नहीं लगा रहा हूँ कि उसे देखकर आपके बाल-बच्चे डर जायेंगे. पत्नी ने अल्टीमेटम ultimatum दे दिया है कि मैं ब्लोगिंग blogging बंद करूं वरना वह मायके चली जायेगी. मुझे रह-रह कर 'बाबी' फिलिम film का गीत याद आ रहा है- 'मैं मैके चली जाऊंगी तू ब्लोगिंग blogging करते रहियो."


अभी-अभी एक शेर बनाया है-


'राधा की सौत थी गर किसना की बांसुरी,
बीवी की मेरी सौतन, मेरा ब्लॉग है।'


यह तो अच्छा है कि पत्नी ब्लॉग नहीं पढ़ती वरना मुझ पर और मुश्किलें पड़तीं। अपन के ब्लॉग पर न तो कोई टिप्पणी comment करता, न ही यह ब्लॉगवाणी के 'ज़्यादा बार देखा गया' की लिस्ट list में आ पाता। पसंद की सूची में तो यह आज तक नहीं आ पाया। खामखाँ पत्नी के आगे भद्द पिट जाती. छोड़िये भी, ग़मों की लिस्ट लम्बी होती जा रही है। जिन दोस्तों ने ब्लॉग शुरू करवाया था वे भूमिगत हो गए हैं वरना उन्हें ही बीवी के सामने खड़ा कर देता।


मैं उन जाँबाजों से ईर्ष्या करता हूँ जो एक दिन में कई-कई पोस्ट posts ठेलते हैं। पोस्ट में कुछ हो न हो दर्ज़नों टिप्पणियाँ मार ले जाते हैं. शीर्षक कुछ यों होते हैं- 'लुच्चा कहीं का' या 'मेरा ब्लॉग पढ़ा तो गोली मार दूंगा' टाइप type. टिप्पणियाँ करनेवालों का भी सिंडीकेट sindicate है. पसंद की लिस्ट में इन्हें ७-८ पसंद आसानी से मिल जाती हैं. चाहे पोस्ट में किसी ने माँ-बहन की गालियाँ ठेली हों या फूल-पत्ती-चिड़िया पर कोई कविता पेली हो.


मेरे रोने-धोने का अंत नहीं है। आंसुओं की धार तब और तेज हो जाती है जब मैं ब्लॉग लिखने की अनुमानित लागत कूतना शुरू करता हूँ। ब्लॉग लिखने से पहले मूड mood बनाना होता है. एक ब्लॉग लिखते-लिखते कई पॉकेट सिगरेट sigarette , कुछ मदिरा की बोतलों और इंटरनेट internet का बिल इतना बन जाता है कि एनजीओ NGO खोलने का मन करने लगता है.


लेकिन क्या करें! रहा भी न जाए, कहा भी न जाए और सहा भी न जाए की स्थिति हो चुकी है।
अपनी तो यह हालत है कि- 'हेरी मैं तो ब्लॉग दीवाणी, मेरो दरद न जाने कोय।"

मेरी नई ग़ज़ल

 प्यारे दोस्तो, बुजुर्ग कह गए हैं कि हमेशा ग़ुस्से और आक्रोश में भरे रहना सेहत के लिए ठीक नहीं होता। इसीलिए आज पेश कर रहा हूं अपनी एक रोमांटि...