शनिवार, 19 जनवरी 2008

भूल सुधार (कल लिखी एक कविता)

मैं बहुत पुराना एक जवाब सुधारना चाहता था
जो बिगड़ गया था मुझसे स्कूल के दिनों में
और मेरे सपनों में आता था.
गज़ब ये कि उसकी जांच-कॉपी मिल गयी थी मुझे
अरसा बाद एक दिन परचून की दूकान में
चाय की पत्ती में लपटी हुई.

मुझे सजाना था हॉस्टल का वह कमरा
जिसे अस्त-व्यस्त छोड़ मैं निकला था कभी न लौटने के लिए.

मुझे कटाना था अपना नाम उस खोमचे वाले की उधारी से
जो बैठता था गोलगप्पे लेकर स्कूल के गेट पर.

विदा करते वक्त हाथ यों नहीं हिलाना था
कि दोस्त लौट ही न सकें मेरी उम्र रहते.

माँ की वह आलमारी करीने से लगानी थी
जिसमें बेतरतीब पड़ी रहती थीं साडियाँ
जो मुझे माँ जैसी ही लगती थीं.

रुई जैसी जलती यादों को
वक्त की ओखली में कूट-कूट कर चूरन बना देना था.
लौटा देना था वह फूल
जो मेरी पसलियों में पाथर बनकर कसकता रहता है दिन-रात.

काग़ज़ की कश्ती यों नहीं बहाना थी
कि वह अटक जाए तुम तक पहुँचने के पहले ही.

मुझे संभालकर रखना था वह स्वेटर
जो किसी ने बुना था मेरे लिए गुनगुनी धूप में बैठकर
मेरा नाम काढ़ते हुए.

मुझे खोज निकालना था वह इरेज़र
जो उछल-कूद में बस्ते से गिर गया था
छुटपन में.

बहुत-सी भूलें सुधारना थीं मुझे
पृथ्वी को उल्टा घुमाते हुए ले जाना था
रहट के पहिये की तरह
पृथ्वी के घूमने के एकदम आरंभ में.

- विजयशंकर चतुर्वेदी.

4 टिप्‍पणियां:

  1. ...तराशनी थी वो दांत खाई पेंसिल जो दिन दिन मेज पर झेंप से रगड़ती भोथरी हुई / बदलना था वो चश्में का कांच जिसे रास्तों की धूल ने धुंधला किया / जलानी थी वही जोत जो हवाओं में दहक पा न सकी/ बहुत कुछ बहुत बहुत कुछ/ और .../ आदि से पहले .. - [ धन्यवाद बन्धु - नुक्ताचीनी के नाम - manish]

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  2. इतनी सारी भूलें आप ने कितबी आसानी से ,कितने बखूबी ढंग से सुधार लीं और हमें भी कुछ ऐसी ही भूलें सुधारने के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया, जनाब। ऐसी ही सीधी-सादी, दिल से निकली रचनाएं सीधी दिल में ही उतरती हैं, जो कि इन रचनाओं का मनोरथ होता है।

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  3. कविता बहुत ही अच्छी है. अच्छी इस सन्दर्भ मे कि इसे एक आम आदमी ख़ुद से जोड़ कर देखेगा. भूल सुधार हर आदमी को आत्म-मनन का धरातल भी प्रदान करती है, ऐसा मुझे लगता है. हमने क्या खोया है, क्या पाया है......इस कविता के माध्यम से हम उसके पुनः विश्लेषण के दौर मे जा सकते है . मेरी कविता की समझ पैनी नही है फ़िर भी पढने का शौक इस ब्लॉग मे खींच ही लाता है.

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  4. सीधे दिलतक आ धमकी यह रचना !

    बहुत सुंदर, धन्यवाद .

    सतीश वाघमारे

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