जहां मैं रहता हूँ वहां से भिवंडी ज्यादा दूर नहीं है. भिवंडी को यूं तो लोग वहां के पावरलूम कारख़ानों के लिए याद करते हैं (और किसी ज़माने में हुए भीषण दंगों के लिए भी) लेकिन भिवंडी के लोग आजकल भगवान को याद कर रहे हैं. यहाँ स्वाइन फ़्लू ने दस्तक दे दी है. भिवंडी के कोनगाँव इलाके के कोलीवाड़ा में रहने वाले 57 वर्षीय मधुकर नाईक को स्वाइन फ़्लू हो गया है और उन्हें इलाज के लिए मुंबई के कस्तूरबा गांधी हॉस्पिटल ले जाया गया है. लगभग डेढ़ वर्ष पहले कोनगाँव इलाके में ही स्वाइन फ़्लू से दो लोगों की मौत हो गई थी. इस इलाके में फिर से स्वाइन फ़्लू का मरीज पाए जाने से भय का वातावरण व्याप्त है. हालांकि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी के विशेषज्ञों का कहना है कि जिन लोगों का सामना इस बीमारी से पहले हो चुका है उन्हें डरने की ज़रुरत नहीं है तथा स्वाइन फ़्लू सिर्फ ग्रामीण व अर्द्ध-शहरी इलाकों में ही दबिश दे रहा है. जबकि हकीक़त यह है कि मुंबई में ही स्वाइन फ़्लू के अब तक 14 मामले दर्ज़ हो चुके हैं.
बीते दो महीनों के दौरान भारत में स्वाइन फ़्लू के 689 मामले सामने आये हैं जिनमें से 36 लोगों की दर्दनाक मौत दर्ज़ की गयी है. इनमें महाराष्ट्र सबसे ज्यादा प्रभावित लग रहा है. स्वाइन फ़्लू के 400 मामले अकेले इस राज्य में देखे गए और 18 लोगों की जान चली गयी. मरनेवालों में 13 पुणे, 3 नासिक, 1 औरंगाबाद और 1 धुले ज़िला का निवासी था. महाराष्ट्र के अलावा आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान में स्वाइन फ़्लू कहर ढा रहा है. तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री वीएस विजय अपने राज्य में अब तक 29 मामलों की पुष्टि कर चुके हैं.दिल्ली को ही लीजिये, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ने राजधानी में 6 स्वाइन फ़्लू मामलों की पुष्टि की है जिनमें से 2 मामले तो हाल ही के हैं. आखिर यह घातक स्वाइन फ़्लू है क्या बला?
यह है स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा. इसे स्वाइन फ्लू, हॉग फ्लू या पिग फ्लू भी कहा जाता है. सन 2009 से पिछला स्वाइन फ्लू सन् 1968 में दर्ज़ हुआ था जिसे बतौर हांगकांग फ्लू जाना जाता है. इस नए वायरस के भिन्न रूप अथवा अपर रूप का नाम है- ए (एच1एन1).
स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस आम तौर पर सुअरों में पनपने वाले एन्फ़्लुएन्ज़ा कुल के वायरसों का एक भिन्न रूप है. सन् 2009 तक ज्ञात स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा वायरसों के भिन्न रूप हैं एन्फ़्लुएन्ज़ा 'सी' वायरस और एन्फ़्लुएन्ज़ा 'ए' वायरस के उप प्रक्रार, जिन्हें हम ‘एच1एन1’, ‘एच1एन2’, ‘एच3एन1’, ‘एच3एन2’ तथा ‘एच2एन3’ के रूप में जानते हैं. स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा संयुक्त राज्य अमेरिका, टेक्सास, कैलीफोर्निया, मेक्सिको, कनाडा, दक्षिण अमेरिका, यूके, इटली, स्वीडन, कीनिया, चीन, ताइवान और जापान में पाए जाने सुअरों में एक आम और स्थानीय बीमारी है.
स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस का मानव में संक्रमण आम तौर पर नहीं होता है. और अगर होता है तो उसे जूनोटिक स्वाइन फ्लू कहा जाता है. जो लोग सुअरों के बाड़ों में बहुत नजदीक रहकर काम करते हैं उन्हें संक्रमण का खतरा अधिक रहता है. बीसवीं शताब्दी के मध्य में एन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस के उप प्रकारों की पहचान संभव हो पायी थी. उसके बाद ही इस तरह के वायरसों के संक्रमण की तीव्रता का ठीक-ठीक अंदाजा लगाया जाने लगा. आज वैज्ञानिक यह पता लगा चुके हैं कि इस बार मनुष्यों में फैला स्वाइन फ्लू एन्फ़्लुएन्ज़ा 'ए' वायरस के उप प्रकार एच१एन१ का नया भिन्न रूप है. इस भिन्न रूप के जींस स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस के जींस से मिलते जुलते हैं.
सबसे पहले सन् 1918 में फैली फ्लू महामारी के दौरान स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा को मानव एन्फ़्लुएन्ज़ा से सम्बंधित बीमारी बताने की कोशिश हुई थी. इस महामारी के दौरान आदमी और सुअर एक ही समय फ्लू से पीड़ित हुए थे. हालांकि सुअरों में एन्फ़्लुएन्ज़ा फैलने के कारक वायरस की शिनाख्त इसके करीब 12 वर्ष बाद सन् 1930 में ही हो सकी थी. इसके अगले 60 वर्षों तक स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा का कारक विशेष तौर पर एच1एन1 वायरस के एक भिन्न रूप को बताया जाता रहा. यह सन् 1997 से 2002 के बीच का दौर था जब उत्तरी अमेरिका के सुअरों में फैले एन्फ़्लुएन्ज़ा का जिम्मेदार तीन अलग-अलग उप प्रकारों तथा पांच अलग-अलग जीनोंटाइपों के नए भिन्न रूपों को ठहराया गया.
सन् 1997-98 के दौरान इस वायरस का एच2एन3 भिन्न रूप सामने आया. इस भिन्न रूप में मानव, सुअर और पक्षियों के मिले-जुले जींस मौजूद थे. उत्तरी अमेरिका में स्वाइन फ्लू के लिए आज सबसे बड़ा जिम्मेदार यही वायरस है. एच1एन1 तथा एच3एन2 के जीनोम मिलने से एच1एन2 भिन्न रूप उत्पन्न हुआ है. कनाडा में सन् 1999 के दौरान एच4एन6 वायरस का एक भिन्न रूप प्रजातियों की सीमा पार करके पक्षियों से सुअरों में प्रवेश कर गया था. सौभाग्य से इस भिन्न रूप को एक ही सुअर बाड़े में सीमित करके नियंत्रित कर लिया गया था.
स्वाइन फ्लू का एच1एन1 रूप उसी वायरस से सम्बंधित है जिसके चलते सन् 1918 में फ्लू महामारी फैली थी. सुअरों में बने रहने के साथ-साथ 1918 महामारी का वायरस रूप बदल-बदल कर पूरी बीसवीं शताब्दी के दौरान मानवों में संक्रमण करता रहा है. इससे मानवों में सामान्य मौसमी एन्फ़्लुएन्ज़ा फैलता देखा गया है. यद्यपि सुअरों से मनुष्य में सीधा फ्लू संक्रमण न के बराबर होता है फिर भी सन् 2005 के बाद अमेरिका में 12 ऐसे मामले दर्ज़ हुए.
मनुष्यों में स्वाइन फ्लू अनगिनत बार फैलता देखा गया है जिसे जोनोसिस कहा जाता है. लेकिन हर बार इसका फैलाव सीमित रहता है. हाँ, सुअरों में यह आम और लगातार मौजूद रहने वाली बीमारी है जिससे कई देशों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. एक आंकड़े के मुताबिक स्वाइन फ्लू के चलते अकेले ब्रिटेन के मांस उद्योग को 65 मिलियन पाउंड की चपत हर साल लगती है.
स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा का इतिहास सन 1918 की फ्लू महामारी से प्रारंभ होता है. हालांकि इसके वायरस का उद्गम कब, कहाँ और कैसे हुआ यह आज तक अज्ञात है. यह फ्लू मनुष्यों से सुअरों में फैला या सुअरों से मनुष्यों में; यह भी स्थापित नहीं किया जा सका है. इसका एक कारण यह भी है कि 1918 की फ्लू महामारी का पता पहले मनुष्यों में चला था उसके बाद सुअरों में. अगला मामला हमें 5 मई 1976 के दिन अमेरिका के फोर्ट डिक्स में देखने को मिलता है. एक सैनिक कमजोरी और थकान की शिकायत के बाद अगले ही दिन मर जाता है और उसके 4 साथी सैनिक अस्पताल में भर्ती कराये जाते हैं. दो हफ्तों बाद स्वास्थ्य अधिकारी ऐलान करते हैं कि सैनिक की मौत एच1एन1 वायरस के एक भिन्न रूप के संक्रमण से हुई है. इस भिन्न रूप को 'ए/न्यू जर्सी/1976 (एच1एन1) नाम दिया गया था.
सितम्बर 1988 में अमेरिका के विस्कोंसिन राज्य की वालवर्थ काउंटी में बारबरा एन वीनर्स नामक गर्भवती महिला की स्वाइन फ्लू से जान चली गयी थी. यह वायरस उन हाट-मेलों में पाया गया जहां सुअर बिक्री या प्रदर्शनी के लिए लाये जाते थे. बारबरा भी ऐसे ही एक मेले में अपने पति के साथ गयी थी. हालांकि यह वायरस सीमित ही रहा. इसके बाद 1998 के दौरान अमेरिका के चार राज्यों में स्वाइन फ्लू देखा गया, साल भर के अन्दर ही इसने पूरे अमेरिका के सुअरों को अपनी चपेट में ले लिया. वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि इस बार का वायरस मानव तथा पक्षियों में पाए जाने वाले फ्लू वायरस के भिन्न रूपों का मिश्रण है. अगस्त 2007 में फिलिप्पीन्स के कृषि विभाग ने भी देश भर के सुअरों में फ्लू महामारी फैल जाने की बात कबूली थी.
...और साल 2009 का स्वाइन फ्लू. यह एच1एन1 उप प्रकार के एक ऐसे भिन्न रूप से फैला जो पहले सुअरों में नहीं पाया जाता था. महामारी फैलने के बाद 2 मई 2009 को यह वायरस एल्बर्टा (कनाडा) के एक सुअर बाड़े में पाया गया जिसके तार मेक्सिको में फैली फ्लू महामारी से जुड़ते थे. मेक्सिको में तो यह बीमारी फरवरी-मार्च 2009 में ही फैल जाने की शुरुआती रपटें मिलने लगी थीं. कहा जा रहा था कि स्मिथफूड्स फार्म के एक सुअर बाड़े में अपनाए जा रहे गलत तरीकों की वजह से स्वाइन फ्लू पैदा हुआ और मनुष्यों में फैल गया. हालांकि स्मिथफूड्स ने इसका तत्काल खंडन भी कर दिया था.
देखने वाली बात यह है कि अमेरिकी ‘बीमारी नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र’ ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अमेरिका में पाए गए स्वाइन फ्लू के वायरस का नया भिन्न रूप मेक्सिको के वायरस से पूरी तरह मेल खाता था. बता दें कि अमेरिका की सीमा मेक्सिको से सटी हुई है. स्वाइन फ्लू से पहली मौत 13 अप्रैल 2009 को मेक्सिको की ओआक्साका काउंटी में दर्ज की गयी थी. कनाडा में भी स्वाइन फ्लू वायरस तब पाया गया जब एक मजदूर मेक्सिको से वहां के एक सुअर बाड़े में कुछ ही दिन पहले लौटा था. इससे साबित होता है कि इस बार का स्वाइन फ्लू दैत्य मेक्सिको में पैदा हुआ था.
स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा भारत समेत विश्व के हर सुअर पालन करने वाले देश में मौजूद है. सुअरों में यह पूरे साल फैलता रहता है. इसकी रोकथाम के लिए कई देश अक्सर सुअरों को टीका लगवाते हैं. भारत में अब तक इस बात के कोई संकेत नहीं मिले हैं कि मानवों में मिले स्वाइन फ़्लू का सम्बन्ध सुअरों में मौजूद वायरस से है. फिर भी एहतियात के तौर पर भारत सरकार के पर्यावरण, खाद्यान्न एवं ग्रामीण विभाग ( डीईएफआरए) ने सुअर पालकों को निर्देश जारी किए कि वे उच्चस्तर की साफ-सफाई रखें. यद्यपि एन्फ़्लुएन्ज़ा ए (एच1एन1) वायरस पूरे विश्व में मानव से मानव में फैल रहा है और कई देशों में मौत का तांडव भी खेल रहा है. इसीलिए 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' की दुनिया भर में फैलते जा रहे स्वाइन फ़्लू पर पैनी नजर है. भारत सरकार भी इस बार पहले से ज्यादा तैयार दिख रही है क्योंकि 2009 का अनुभव उसे है और उससे लोगों ने भी सबक सीखा होगा. टीके अस्पतालों तक पहुंचाए जा रहे हैं और जहां ज़रूरी है वहां चिकत्सा अधिकारियों को अतिरिक्त एलर्ट भी किया जा रहा है. इसके बावजूद हाल ही में सक्रिय हुए इस वायरस को हलके में लेना महंगा पड़ सकता है क्योंकि लोगों की जान जाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है.
एन्फ़्लुएन्ज़ा लोगों में फैलता कैसे है?समझा जाता है कि यह नया एन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस आम मौसमी फ़्लू की तरह ही फैलता है. संक्रमित व्यक्ति के बात करते समय, खांसते समय या छींकते समय उसके मुंह या नाक से जो छोटी बूँदें निकलती हैं, उनको सांस द्वारा अन्दर ले लेने से संक्रमण हो सकता है. इस वायरस से संक्रमित कोई चीज जैसे टिश्यू पेपर या दरवाजे के हैंडिल के संपर्क में आने के बाद अपनी नाक या आँख छूने से भी संक्रमण हो जाता है.
संक्रमित सुअरों के लक्षण क्या हैं?सुअरों में स्वाइन एन्फ़्लुएन्ज़ा होने पर वे बेहद सुस्त पड़ जाते हैं. बुखार एवं खांसी के अलावा उन्हें सांस लेने में भारी कष्ट होता है. किसी संक्रमित सुअर की सांस से निकली बूँदें सांस के जरिए अन्दर जाने से सुअरों में स्वाइन फ़्लू फैलता जाता है. वे संक्रमित सुअर के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संपर्क में आने पर भी संक्रमित होते जाते हैं.
मनुष्य में स्वाइन फ़्लू के क्या लक्षण हैं?स्वाइन फ़्लू से ग्रस्त मनुष्य में ठीक वैसे ही लक्षण दिखाई देते हैं जैसे कि उसके सामान्य मौसमी फ़्लू से संक्रमित होने पर नजर आया करते हैं. मसलन बुखार, थकान, भूख की कमी, खांसी और गला दुखना. कुछ लोगों को उल्टी-दस्त की शिकायत भी हो सकती है. उदाहरण के लिए मेक्सिको में ए (एच1एन1) वायरस से पीड़ित लोगों को भयंकर पीड़ा झेलनी पड़ी और उनकी मृत्यु भी हो गयी. जबकि भारत सहित अन्य देशों में इस एन्फ़्लुएन्ज़ा के लक्षण नरम रहे हैं और लोग पूरी तरह ठीक भी हुए हैं.
एन्फ़्लुएन्ज़ा संक्रमित व्यक्ति क्या करे?अगर आप किसी फ़्लू जैसा महसूस कर रहे हैं तो घर से बाहर हरगिज न निकलें और जितना हो सके कम से कम लोगों के संपर्क में रहें. टेलीफोन पर अपने पारिवारिक चिकित्सक से बात करें और उसकी सलाह पर पूरी तरह अमल करें. अपनी मर्जी से कोई भी दवा खरीदकर न खाएं. हालांकि कुछ दवाएं प्रचलन में हैं लेकिन फ़्लू की तीव्रता के अनुसार ही इन्हें लेने या न लेने की सलाह चिकित्सक देते हैं. अगर भारत में खतरा बढ़ता है तो भारतीय स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी अगले दिशा-निर्देश जारी करेगी.
रोकथाम के उपायएन्फ़्लुएन्ज़ा ए (एच1एन1) से संक्रमित व्यक्ति जब खांसता या छींकता है तो वह अपने आसपास की सतह पर विषाणु फैला देता है. इतना ही नहीं उसके द्वारा इस्तेमाल किए गए टिश्यू पेपर या बिना धुले हाथों के छू जाने से भी विषाणु फैलते हैं. इसलिए सतह को साफ रखना जरूरी हो जाता है ताकि आसपास के लोगों में संक्रमण न हो सके. डिटर्जेंट और पानी से सतह साफ करना आसान है लेकिन जहां हाथ नहीं पहुंचता वहां ब्रशों और विषाणुनाशक उत्पादों का प्रयोग करना उचित रहता है. किचन प्लेटफोर्म, टायलेट फ्लश और दरवाजों के हैंडिल ऐसी ही कुछ जगहें हैं जहां विषाणुनाशकों का प्रयोग करना चाहिए. जिन चीजों को घर अथवा दफ्तर के लोग अक्सर छूते हैं उनका स्वच्छ रहना अत्यावश्यक है. इनमें कम्प्यूटर कीबोर्ड, टेलीफोन रिसीवर, हैंडिल, स्विच, नलों की टोंटी आदि शामिल हैं.
अपने आसपास बढ़िया साफ-सफाई रख कर एन्फ़्लुएन्ज़ा समेत हर किस्म के वायरस के संक्रमण से बचा जा सकता है.
स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी ने लोगों से कहा है कि वे हर समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:-
अ) साबुन और पानी से अपने हाथ दिन में कई बार धोएं.
ब) छींकते अथवा खांसते समय अपना मुंह और नाक टिश्यू पेपर से ढँक लें.
स) इस्तेमाल किए गए टिश्यू पेपर को सावधानी और जिम्मेदारी से कचरे की टोकरी में डालें.
द) दरवाजे के हैंडिल जैसी कड़ी सतहों को हमेशा साफ रखें.
इ) सुनिश्चित करें कि बच्चे भी इन बातों का ख़याल रखें.