हिन्दी ब्लॉग जगत में कुछ लोग बहस फंसाये रहते हैं। भाषा, वर्ण, लिंग, जाति आदि आजकल के लोकप्रिय विषय हैं. आगे चल कर इनका स्वरूप क्या होगा कह नहीं सकते. पर इतना तय है कि हरि अनंत हरिकथा अनंता की तर्ज पर ब्लॉग जगत के संत इसे अपनी-अपनी तरह से अपनी-अपनी स्टाइल में कहते-सुनते रहेंगे. जय हो!
...तो हुआ ये कि एक ब्लॉग ने भाषा की अशुद्धता पर बहस छेड़ दी। अब बहस छिड़ी तो टिप्पणियों का दौर दौरा शुरू हुआ. कुछ शीरीं जबान में तो कुछ कुल्हड़कट भाषा में. और एग्रीगेटरों का पोस्ट दिखाना था कि ठपाक से टिप्पणी आ गयी-
रामचंद्र डेविड ने कहा- बोले तो, तुम अपना पोस्टिंग में जो बी फरमायेला है। पण अपुन को बरोबर जमेला नहीं है. तुम बोलता है लैंग्वेज प्योर होना मांगता, पण अपुन का लैग्वेज जितना मांगता है उतना प्योर नहीं है. तो क्या अपुन पोस्टिंग नईं करने का?
टिप्पणी पढ़कर बहस छेड़ने वाले अर्द्धसत्य त्रिपाठी ने यथासंभव शालीनता से जवाब सरकाया- बन्धु, पोस्टिंग नहीं, चिट्ठी लिखिए और यह लिखने में कठिनाई हो तो पोस्ट लिखिए पोस्टिंग नहीं। ॥और यहाँ विचार-विमर्श भाषा पर चल रहां है, और आप तनिक अपनी जिह्वा तो देखिये..!
रामचंद्र डेविड- क्या बोल रेला है हव्वा? मैं अपना हव्वा देखूं? हलकट कहीं का!
अर्द्धसत्य (क्रोध पीकर) - हव्वा नहीं बन्धुवर, जिह्वा।
रामचंद्र डेविड- अबी अपुन को समझ में आ रेला है, तुम साला लोग अपुन का लैंग्वेज सुधारने का चांसइच नई देना चाहता। अपुन ऐसाइच लेखेंगा, जो उखाड़ना है उखाड़ लो.
अब अर्द्धसत्य त्रिपाठी को तो प्रचंड क्रोध आ गया। वह बेनामी मोड में चले गए- अरे सठ! कनगोजर की संतान. तुझ जैसा तुच्छ चिठ्ठाकार मुझसे इस भाषा में बात करने का दुस्साहस कर रहा है?
उधर रामचन्द्र डेविड सुनामी मोड में आकर बोला- अबे वरली के गटर, पारसी बावा के सड़ेवे अंडे के छिलके! वट है तो सामने आ। ये बेनामी-तेनामी होके क्या बोलबचन दे रेला है?
अर्द्धसत्य त्रिपाठी ने क्रोध में की-बोर्ड तीन बार पटक दिया। पास बैठकर एबीसीडी लिख रहे उनके बच्चे सहम गए. लेकिन संयत होकर अगली टिप्पणी टाइप की- हमारा तात्पर्य यह है कि आप जैसा सज्जन पुरूष इस जीवन में आज तक नहीं मिला है. अभी-अभी आपने जो गालियाँ दी हैं वह बेनामी मैं नहीं था. मैं तो यह अनुरोध कर रहा था कि-
तभी उधर से रामचन्द्र डेविड की टिप्पणी आ गयी- अबे, कोन से बिल में घुस गएला है? हिम्मत है तो सामने आ झाडू से बिछड़े हुए तिनके...
अब पंडित जी हत्थे से उखड़ गए और बेनामी मोड में पहुँचकर बोले- तुम अवश्य किसी शूद्र खानदान से हो। वरना भाषा की बहस में भाषा की शालीनता का ध्यान अवश्य रखते...
उधर रामचन्द्र डेविड भी सुनामी मोड में आ गया- अबे भाषा की तो अलटम की पलटम। तू डिबेट को अब लैंग्वेज से कास्ट पे ले जा रेला है॥अबे डर गएला है क्या? लोकल को पटरी से उतार रेला है हटेले?
अब अर्द्धसत्य जी पाजामे से बाहर हो गए। कम्प्यूटर के सामने चुल्लू में पानी लेकर बेनामी मोड में ही बोले- अबे मैं मारण, उच्चाटन, वशीकरण सारी विद्याएँ जानता हूँ. यहीं से ऐसी मंत्रबिद्ध टिप्पणी करूगा कि तेरे प्राण-पखेरू उड़ जायेंगे. ले यह रहा-- ओइम फट स्वाहा॥ ओइम ह्रीं क्लीं..बिच्चई-बिच्चई..
पंडित जी को पता नहीं था कि रामचन्द्र डेविड के यहाँ बिजली चली गयी है और वह आलमारी से रम का अद्धा निकाल कर बिजली आने का इंतज़ार कर रहा है।
कुछ देर तक अर्द्धसत्य त्रिपाठी क्रोध में थर-थर कांपते रहे फिर कोई टिप्पणी न आयी देख संतोष से बोले- मृत्यु को प्राप्त हो गया साल्ला...
उनका यह कहना था कि अचानक सिर पर बड़े ज़ोर का बेलन पड़ा। पंडिताइन को लगा कि वह उसके भाई को गाली दे रहे हैं. शाम को ही दहेज न लाने को लेकर अर्द्धसत्यजी ने उनके पिता और भाई को भला-बुरा कहा था, सो वह पहले से ही चिढी बैठी थीं. बेलन के प्रहार से पंडितजी के सिर पर अमरूद के आकार का एक गूमड निकल आया और वह तत्काल प्रभाव से मूर्छित होकर भू-लुंठित हो गए. उनके मुंह से निकला- 'ओ मीन गोत्ट'. पंडितजी इन दिनों जर्मन सीख रहे थे.
लेकिन भाई साहब, यह सब तो ठीक है। अब चंद प्रतिरक्षात्मक उपाय कर लूँ:---
सावधानिक चेतावनी: 'भाइयो और भाइयो! उपर्युक्त संवाद और घर का माहौल पूर्णतः काल्पनिक था. अगर यह किसी जीवित ब्लोगर से मेल खा जा जाए (मृत की कौन परवाह करता है!) तो इसे महज संयोग माना जाए. फिर भी अगर कोई असंतुष्ट आत्मा मुझे लपेटे में लेना चाहे तो ब्लॉग जगत के प्रख्यात वकील दिनेश राय द्विवेदी जी से बात हो चुकी है. उनकी फीस उड़नतस्तरी जी फायनेंस कर रहे हैं सौदा द्विवेदी जी की हर पोस्ट (अच्छी हो बुरी) पर कम से कम बीस टिप्पणियों का हुआ है.... और गाली-गलौज करने से पहले ज्ञानदत्त पांडे जी की मुखमुद्रा उनके ब्लॉग पर जाकर अवश्य देख लें.'
भई वाह, मज़ा आ गया इस आईपीएल में.
जवाब देंहटाएंफायनेंन्स्ड बीस में से पहली टिप्पणी. हा हा :)
जवाब देंहटाएंबहुत सालिड.
हा हा भाई आनंद आ गया धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशानदार!
जवाब देंहटाएंबोले तो झक्कास..
---रामचंद्र डेविड
वाह-वाह एक ही व्यक्ति में यह दोनों भाषाओं की पटुता हो तो मजा आ जाये - दरकार है श्री रामचन्द्र अर्धसत्य त्रिपाठी डेविडाचार्य की!
जवाब देंहटाएंअर्थात आपकी?! ऐसेइच पोस्ट रोज ठेलें!
बन गई बात। अइसी पोस्ट रोज रोज ठेलेगा तो अपुन फोकट में ही लड़ेगा, टिप्पणी लेने के बजाय रोज देता रहेगा।
जवाब देंहटाएंअर्धसत्य त्रिपाठी कहीं सत्यदेव त्रिपाठी तो नहीं..
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट...
जवाब देंहटाएंवैसे सर, बतायें कि ब्लॉग कथा का कौन सा अध्याय है ये? अगर पहला है तो फिर कल दूसरा पढने को मिलेगा.
इस ट्वेन्टी-ट्वेन्टी के छक्के-चौके के क्या कहने. व्यंग्य पढ़ हँसते-हँसते लोट-पोट हो गया.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब शरद जोशी और हरिशंकर परसाइ बनने की कोशिश आपने की है। लेकिन व्यंग्य के नाम पर बकवास से ज्यादा कुछ भी नही है। लगता है एक बडा तंत्र है आप लोगों का तू मेरी पीठ थपथपा मैं तेरी। रही बात टिप्पनियों की तो भाषा के सवाल पर आप भी उस बहस मुहाबसे में फुदक फुदक कर प्रवचन दिये जा रहे थे । पका दिया आप लोगों ने भाषा भाषा की रट लगाकर...खैर नाराज नही होँगे ...
जवाब देंहटाएंकुमार आलोक जी, मैं आपसे बिलकुल नाराज नहीं हूँ. वो दोहा है न- 'निंदक नियरे राखिये...'. मुझे उम्मीद है आप मेरा भला ही करेंगे.
जवाब देंहटाएंआपकी कैसी भी टिप्पणी का स्वागत है और इंतज़ार भी.
..और हाँ, मेरी क्या औकात है जो मैं परसाई जी और शरद जोशी जी के चरणों की धूल भी बन सकूं.
जवाब देंहटाएंआपने हार क्यूँ मान ली ...इंगलैंड के तेज गेंदबाज फेड्री ट्रमेन ने कहा था कि मेरे रिकाड्र तक पहुंचने के लिये गेंदबाजों के टखने टूट जाएंगे..महज १७० विकेट के आसपास की थी संख्या...क्या हुआ मुरलीधरन और शेन वार्ण से तबसीरा करना चाहिये फेड्री ट्रमेन साहब को ...आप निसंदेह बढिया लिखते है और हम जैसों से बहुत बडा कद भी है आपका..फिर परसाइ और जोशी क्यूँ नही बन सकते आप ...वैसे बुरा नही मानेंगे..मजा आता है आप के पोस्ट पर टिप्पनी करने में ....
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