बुर्जुआ समाज और संस्कृति-१६
पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि हर सरकार सिर्फ़ समझौते ही नहीं तोड़ती थी, अन्तरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करने में भी माहिर रही। तानाशाह या लोकतंत्र- सभी का एक ही हाल था. अब आगे-
समसामयिक अन्तरराष्ट्रीय संधियों के विवरण से यह साफ ज़ाहिर है कि इन संधियों का महत्त्व कागज़ के टुकड़े से ज्यादा कभी नहीं रहा। किसी भी पक्ष द्वारा शुरुआत होनी चाहिए. संधि करनेवाले इसे मानने के अभिप्राय से संधियाँ नहीं करते और दूसरा पक्ष भी इसका पालन करेगा, ऐसा विश्वास नहीं पालते थे. राष्ट्रसंघ के सदस्य, इस संस्था के साथ जो समझौते हुए हैं, या परस्पर भी जो हुए हैं- सभी तोड़ चुके हैं.
सरकारें तक आतंरिक मामलों में वादाखिलाफी करती हैं। Gold certificate के स्वर्ण-भुगतान से लेकर अनगिनत सुधार और संशोधन के कार्यक्रमों के नकार की एक सुदीर्घ परम्परा है. प्रतिज्ञा-पालन के नाम पर आया है सुविधावाद (expediency) परिस्थितियों के अनुकूल काम करना. अद्भुत नीति है यह सुविधावाद- मनोरंजन, मद्दपान और नृत्य की तरह वर्त्तमान सुखद होते हुए भी भविष्य अन्धकारमय ही रहता है.
'सुविधावादी सिर्फ समझौते ही नहीं, किसी भी नैतिक या सामाजिक दायित्व को भी नकार सकता है. बाहुबल के स्वीकार के अलावा सामाजिक, धार्मिक और मानवीय मूल्यबोध का नकार है. अगर किसी के पास अस्त्रबल है तो मुनाफ़े के लिए जबरन शर्तें आरोपित की जा सकती हैं. अभी हूबहू यही हालत है. इसलिए अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर नग्न बाहुबल ही मीमांसा का पर्याय हो तो आश्चर्यजनक नहीं है।' (ए. पिटरिन सरोकिन/सोशल डायनामिक्स, संक्षिप्त संस्करण, पृष्ठ: ५६६-६७).
बुर्जुआ संस्कृति समाजविरोधी है, फलतः मानवविरोधी भी है। इस संस्कृति का विकास स्वार्थपरता और हिंसा से कदमताल मिलाकर होता है. अमेरिका की सामाजिक-स्थितियां इसका पूरा अक्स है. हिंसक जंतु और मनुष्य में जो अन्तर है वह अमेरिकी नागरिकों और बची हुई दुनिया के लोगों में उससे भी ज्यादा ही है. मनुष्य का पिशाचयोनि में रूपांतरण अमेरिका में ही सर्वप्रथम हुआ है.
वियतनाम के युद्ध में माँओं के पेट चीर कर गर्भस्थ शिशुओं की हत्या, उनकी योनियों में कांच के टुकड़े और विष धर सौंप डालकर त्रास देना, बंदूक के कुंडे से नवजात शिशु के सिर के टुकड़े करना, असहाय जनता की अंतडियों से फुटबाल खेलना, पानी-हवा और खाद्य वस्तुओं में ज़हर मिलाकर आम नागरिकों की हत्या करना, अस्पतालों, शिक्षा प्रतिष्ठान और प्रसूतिगृहों पर बम वर्षा करने जैसे काम जिन्होंने किए, उन्हें मनुष्य की सामान्य संज्ञा देकर भी मनुष्य कैसे कहें?
अमेरिकी सैनिकों ने वियतनाम में जैसे कारनामे किए हैं, उसके लिए अच्छी-खासी मानसिक तैयारी होनी चाहिए; अचानक ऐसी क्रूरता कोई नहीं कर सकता. वे लोग पूरी तैयारी के साथ ही जाते हैं. दरअसल जैसा वे विदेश जाकर करते हैं, स्वदेश में भी वैसा ही करते हैं, वह भी बिना किसी ऊहापोह के.
(कल्पना कीजिये कि इराक़ में इन्होनें क्या गुल खिलाये होंगे- विजयशंकर)
अमेरिकी अपने यहाँ की शिक्षा, संस्कृति और परम्परा के प्रभाव से जन्म लेते ही इन सब कारनामों में अभ्यस्त होने लगते हैं। जिन अपराधों की कल्पना भी अन्य देशों के लोग नहीं कर पाते, उन्हें वे निहायत ठंडे दिमाग़ से अंजाम देते हैं. कोई भी क्रूरतम कार्य बिना हिचकिचाए करना उनका जातीय चरित्र है.
अगली कड़ी में जारी...
'पहल' से साभार, मूल आलेख (बांग्ला) : राधागोविंद चट्टोपाध्याय, अनुवाद: प्रमोद बेडिया.
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आप सही कह रहे हैं. लेकिन वहाँ पिशाचों के शिकार भी रहते हैं और उन से संघर्ष भी करते हैं, कमजोर ही सही.
जवाब देंहटाएंलगे रहो मुन्ना भाई!
जवाब देंहटाएंbahut hi sahi or sateek likkha hai amrikiyon ke bare main
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