पिछली कड़ी में आपने सवाल उठते देखा कि आर्य इसे सोमरस ही क्यों कहते थे? अब आगे...
सम्भव है इसके सेवन से ऐसे बल का संचार होता रहा हो कि पीने वाला महायोद्धा यहाँ तक कि युद्ध का देवता तक बन सकता था. आश्चर्य नहीं है कि ऋगवेद में इन्द्र को नगरों का नाश करने वाला कहा गया है और सोमरस इन्द्र जैसे देवताओं को प्रस्तुत किया जाता था. तब कहीं इन्द्र येहोवा की परम्परा का वाहक तो नहीं था जो कालांतर में स्वयं एक पीठ बन गया था!
अब हम ज़रा पश्चिम में नशे के आम जरिये वाइन की जड़ें तलाशने की कोशिश करेंगे. आज भी पश्चिमी देशों में व्हिस्की, रम या जिन से कहीं ज्यादा वाइन का सेवन अधिक प्रतिष्ठित माना जाता है. ध्यान देने की बात यह है कि प्राचीन काल में लोग वाइन और बीयर में फ़र्क करते थे. वाइन काफी पहले ईजाद कर ली गयी थी. प्राचीन ईरान तथा मिस्र से प्राप्त चित्रों में दर्शाया गया है कि वाइन पीने के लिए प्यालों का प्रयोग होता था जबकि बीयर सीधे बैरलों से पतली सटक के जरिये पी जाती थी. मदिरापान अक्सर सामूहिक होता था.
मिस्र में एक परम्परा थी कि वर्ष के प्रथम माह में एक स्थान पर सैकड़ों स्त्रियाँ इतनी शराब पीती थीं कि सुबह तक उनमें से कोई अपनी टांगों पर खड़ी नहीं हो पाती थी. यह विराट शराब आयोजन एक अंधविश्वास के तहत किया जाता था. इस पर यहाँ विस्तृत बात करने से विषयांतर हो जाने का खतरा है.
प्राचीनकालीन मिस्र में अंगूर की खेती नहीं होती थी. लेकिन फिलिस्तीन से व्यापार के कारण नील डेल्टा में शाही शराब का उत्पादन होता था. वे कांस्ययुग के शुरुआती दिन थे. इसे 'पुराने राज्य' का शुरुआती दौर भी कहा जाता है. बात २७०० ईसा पूर्व की है. तब के फिलिस्तीन में आज का इजरायल, पश्चिमी तट, गाज़ा और जोर्डन शामिल थे. नील डेल्टा में अंगूर की खेती बहुत बाद में शुरू हुई. यहाँ शराब के जार तीसरे वंश के फिराओनों की क़ब्रों में दफ़न किए जाने के प्रमाण मिले हैं. एब्रीडोस की क़ब्रों में ऐसे कई जार मिले हैं.
मेसोपोटामिया में दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से पहले का शराब-इतिहास दस्तावेज़ के तौर पर लगभग न के बराबर मिलता है. लेकिन जारों के अन्दर पाये गए द्रव्य के परीक्षण ने यह साबित कर दिया कि ३५००-३१०० ईसा पूर्व के दरम्यान यहाँ का उच्च वर्ग शराब का छककर सेवन करता था. यह सिलसिला उरुक काल के बाद के दौर तक चला. शराब के सिलेंडरों पर मिली शाही सीलों से पता चलता है कि बीयर ट्यूबों में स्ट्राओं के जरिये तथा शराब (वाइन) प्यालों में पी जाती थी, जैसा कि मैंने पहले ही अर्ज़ किया है. यह आज के इराक़ का दक्षिणी इलाका था. पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व के 'father of history' कहे जाने वाले ग्रीक इतिहासकार हेरोडेटस ने लिखा है कि यूफ्रेतस या टिगरिस से लेकर आर्मीनिया के इलाकों में शराबनोशी काफी बाद तक होती थी.
आज के जोर्जिया में भी ६००० वर्ष ईसा पूर्व के जार मिले हैं. यह सुलावेरी का इलाका था. पैट्रिक एडवर्ड मैकगवर्न ने अपनी किताब एनसियेंट वाइन: द सर्च फॉर द ओरीजिंस ऑफ़ विनी कल्चर में लिखा है कि यूरेशियाई वाइन (अंगूर की खेती और शराब का उत्पादन) आज के जोर्जिया में शुरू होकर वहाँ से दक्षिण की तरफ़ पहुँची होगी. यह किताब प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस से साल २००३ में छपी थी.
दूसरा भाग यहीं समाप्त होता है.. इतिश्री रेवाखंडे द्वितीयोध्याय समाप्तः...
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